Friday 21 April 2023

प्रेम और मानवीय भावों को स्पंदित करती मनीष मिश्रा की कविताएं

 प्रेम और मानवीय भावों को स्पंदित करती मनीष मिश्रा की कविताएं



मानव के जीवन में मानवीय गुणों का मुख्य आधार प्रेम है। परस्पर प्रेम और सौहार्द से ही मानव ने अपनी विकास यात्रा के विविध पड़ावों को सफलतापूर्वक पार किया है। मानव ने प्रेम के माध्यम से उस विधि को अंगीभूत किया है, जिससे वह समाज में अपने अस्तित्व को बरकरार रखकर भी किसी दूसरे की सत्ता को सहज ही स्वीकार कर लेता है। प्रेम में किसी दूसरे का होना स्वयं से भी अधिक महŸवपूर्ण हो जाता है। किसी दूसरे की इसी सत्ता और महŸव को मनीष कुमार मिश्रा ने अपने कविता संग्रह ‘इस बार तुम्हारे शहर में’ में गुणीभूत किया है। मनीष कुमार ने इस कविता संग्रह के माध्यम से आज के दौर में ऊब और सीलन भरी जिन्दगी में एक नई ऊर्जा का संचार किया है। आज के दौर में स्त्री-पुरुष संबंधों में बढ़ती खाई को पाटने का प्रयास है प्रस्तुत कविता संग्रह। प्रेम की मिठास का एहसास करवाती मनीष जी की कविताएं परस्पर समर्पण का भी संदेश देती हैं। प्रेमिका को ‘लड्डू’ की संज्ञा देना प्रेम की निश्चलता का भी प्रतीक प्रतीत होता है, यह लड्डू कोई साधारण मिठाई न होकर उस लड्डू को प्रतीक है जिस किसी अबोध बालक का मन रीझ जाता है और उस रीझने में किसी प्रकार स्वार्थ नहीं होता है। होता है तो बस निश्चल प्रेम।

प्रस्तुत संग्रह की कुल साठ कविताओं में मनीष जी के लेखन की सहजता को आंका जा सकता है। बिना किसी काव्यात्मक औपचारिकता के लिखी गईं ये कविताएं युवा वर्ग या यूं कहें कि प्रेम में पगे हुए युवा वर्ग की मनोस्थितियों को भी रेखांकित करती हैं। आज जब प्रेम भी व्यापार जैसी लेन देन की प्रक्रिया ही प्रतीत होता है। परन्तु मनीष जी की कविताओं में अभिव्यक्त प्रेम निश्चल प्रेम है, जहां प्रेमी प्रेमिका का समर्पण है, मान-मनुहार है, रुठना मनाना है, मिलन की उत्कंठा है, विरह की आकुलता है, स्मृतियां हैं अर्थात् प्रेम का वह प्रत्येक रूप है, जो हमें सामान्य जीवन में देखने को मिलता है। मनीष मिश्रा की कविताओं में प्रेम के वो आदर्श भी मिलते हैं, जो आजकल के प्रेम से नदारद होते जाते हैं। इनकी कविताओं में प्रेमी प्रेम को केवल दैहिक स्तर पर ही महत्वपूर्ण नहीं मानता, अपितु उसके लिए वास्तव में प्रेम आत्म-विस्तार का आधार है। प्रेमी इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कहता है -

उसे जब देखता हूं

तो बस देखता ही रह जाता हूं

उसमें देखता हूं

अपनी आत्मा का विस्तार

अपने सपनों का 

सारा आकाश  ।


प्रेम के माध्यम से अपनी आत्मा के विस्तार का साक्षात्कार हो जाने पर प्रेमी के मन की सारी शंकाएं समाप्त हो जाती हैं और वह पूर्णतः अपनी प्रेमिका के प्रति समर्पित हो जाता है। वह अपनी प्रियतमा की आस्थाओं में ही अपनी आस्था को पाता है। अपनी प्रेमिका का विश्वास में ही उसका विश्वास है। इसीलिए उसकी अनगिनत प्रार्थनाएं अपनी प्रेमिका के प्रति समर्पित हैं। वह मानता है कि 

वो समर्पण का भाव

जिसकी हकदार

सिर्फ और सिर्फ

तुम रही हो ।

प्रस्तुत कविता संग्रह का वैशिष्ट्य यह भी है कि यह संग्रह स्मृतियों का संग्रह है। कवि ने अपनी स्मृतियों में आज भी अपने प्रेम को जीवंत बनाए रखा है।बिछुड़ जाने के बाद पहाड़ जैसे जीवन की तुलना पहाड़ी रास्तों से करते हुए प्रेमी का यह कहना कि आजकल/ये पहाड़ी रास्ते/कोहरे से भरे होते हैं/जैसे/मेरा मन/तेरी यादों से भरा होता है। इसीलिए संग्रह की अधिकतर कविताएं एक प्रेमी की अपनी प्रेमिका के साथ व्यतीत किए गए क्षणों की स्मृतियों पर आधारित हैं। इन कविताओं में कवि की संवेदनाएं इतनी मर्मस्पर्शी हैं कि पाठक स्वयं को उस प्रेमी-प्रेमिका की दुनिया में विचरण करता हुआ पाता है। इसका एक कारण यह भी है कि रचनाकार ने रोज़मर्रा की जिन्दगी में घटित होने वाली सामान्य सी घटनाओं को प्रेम की आभा के साथ बहुत ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया है। 

सम्पूर्ण हो जाना प्रेम के लिए आवश्यक नहीं है और यही विचार मनीष मिश्रा की कविताएं भी संप्रेषित करती प्रतीत होती है। मनीष मिश्रा की कविताओं में प्रेमी और प्रेमिका एक दूसरे से विलग हो जाने के बाद भी एक दूसरे के प्रति आदर और समर्पण का भाव रखते हैं। एक दूसरे के प्रति नकारात्मक भाव का लेशमात्र भी उनके मन में नहीं है, अपितु विरह में पग कर वे और भी परिपक्व हो गए हैं। इस काव्य संग्रह से एक नयी चेतना दृष्टि यह भी आभासित होती है कि प्रेमी विरह में भी कहीं व्याकुल नहीं होता। उसका जीवन सामान्य दिनों की ही भांति चल रहा है अर्थात् कवि की जीवन दृष्टि यह भी है कि प्रेम के अधूरेपन को भी बड़े ही चाव और उत्साह के साथ जिया जा सकता है। 

प्रस्तुत संग्रह में कवि ने मां के प्रेम और मां के प्रति प्रेम को भी स्थान दिया है। वह मां को जीवन की जटिलताओं और विपदाओं में आशा की किरण मानता है, रचना की प्रेरणा और जीवन को सुसंस्कृत करने वाली जीवनधारा मानता है, जीवन के उल्लास और उत्सवों में ही नहीं, बल्कि हार और दुर्बलताओं के क्षणों में भी प्रेरणा का स्रोत मानता है। मां के इसी रूप से प्रभावित होता हुआ कवि मन स्वीकार करता है कि समाज में व्याप्त विसंगतियों, बुराईयों को समाप्त कर सकने का सामथ्र्य केवल नारी में ही है। ‘औरत’ कविता के माध्यम से मनीष मिश्रा ने औरत के सामथ्र्य के साथ-साथ औरत के प्रति सम्मान भाव को भी प्रदर्शित किया है। जो व्यक्ति अपनी मां की असीम संभावनाओं को सकारात्मक दृष्टि से पहचान लेता है, वही अपनी प्रेमिका के प्रति इतना समर्पित हो सकता है शायद इसीलिए इन कविताओं में प्रेमी समर्पित है।

मनीष मिश्रा ने अपनी कविताओं में अपनी प्रेमिका और मां के प्रति प्रेम के साथ-साथ अपने परिवेश के प्रति भी प्रेम-भाव को अभिव्यक्त किया है। बनारस की गलियों में गुज़रा समय कवि के लिए केवल समय भर ही नहीं है, अपितु ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने इन गलियों में जीवन को जिया है, खुलकर जिया है, घुलकर जिया है। लंकेटिंग, मणिकर्णिका, अयोध्या, बनारस के घाट जैसी कविताओं में कवि ने अपने परिवेश के प्रति अपने मनोभावों को इस ढं़ग से शब्दबद्ध किया है कि ऐसा प्रतीत होता है, जैसे बनारस कोई स्थान न होकर कोई देव पुरूष है, जिसके प्रति कवि पूर्णतः आसक्त है। इन्हीं कविताओं में मनीष मिश्रा की दार्शनिक दृष्टि का भी परिचय मिलता है। मृत्यु, जीवन, आसक्ति, निरासक्ति, धर्म, कर्म, मोक्ष आदि विषयों को सांकेतिक रूप से व्याख्यायित करती ये कविताएं महनीय बन गयी हैं।

मनीष मिश्रा ने अपने इस संग्रह में कई नये प्रतिमानों और प्रतीकों को भी गढ़ा है। प्रेम की पूर्णता में कवि ने सामाजिक मर्यादाओं की सीमा में न रहकर स्वयं को दरिंदगी का एहसास रखने वाला बताकर अपनी ईमानदारी का भी परिचय दिया है। भाषिक स्तरों पर भी यह कविता संग्रह कुछ विलक्ष्णताएं रखता है। कविताओं के शीर्षक सामान्य सी घटनाओं और विषयों से प्रेरित होते प्रतीत हैं, जैसे- नेलकटर, चाय का कप, लड्डू, चुड़ैल, कैमरा, तस्वीर खींचना, पेन, नेलपालिश, मोबाईल, जूते, विज़िटिंग कार्ड, झरोखा, तुम्हारे गले की खराश आदि कई ऐसे शीर्षक हैं, जो सहसा ही पाठक को आकर्षित करते हैं और इसी के साथ एक खूबी यह भी कि यह शीर्षक केवल शीर्षक भर ही नहीं है, अपितु कवि की प्रेम के प्रति, समाज के प्रति, स्त्री के प्रति, जीवन के प्रति विशेष प्रकार की मानसिकता को द्योतित करते हैं। विज़िटिंग कार्ड जैसी कविता में आज के दौर में भीड़ में भी एकांकीपन के भाव ग्रस्त मानव की व्यथा का चित्रण है। नेलकटर कविता में भी नेलकटर एक ऐसे प्रतीक रूप में प्रयुक्त हुआ है, जो मानव मन अवांछित परिस्थितियों को काटने का काम कर सके। कवि ने अधिकतर साधारण बोलचाल की भाषा में ही अपने भावों में अभिव्यक्त किया है, किन्तु संग्रह में कुछ कविताएं ऐसी भी जहां भाषा की रागात्मकता को भी महसूस किया जा सकता है। संग्रह की ‘जीवन राग’ जैसी कविताएं इसी तथ्य को प्रमाणित करती है कि मनीष मिश्रा जितने साधारण भाषा में सहज प्रतीत होते हैं, उतने ही गूढ़ प्रतीकात्मक भाषा में प्रौढ़ दार्शनिक से महसूस होते हैं।

‘इस बार तुम्हारे शहर में’ की कविताओं में जीवन ने अनेक रंग देखने को मिलते हैं। प्रेमी-प्रेमिका प्रेम, मां-बेटे का प्रेम, मानव और परिवेश का प्रेम ये सब विषय इस संग्रह की कविताओं में अन्तर्भुत हैं। इसीलिए कविताएं दिल को छू लेने वाली हैं, विरह में भी सुखद आनंद का आभास करवाने वाली हैं, पीड़ा का उत्सव मानने की प्रेरणा देने वाली हैं, उल्लास और उन्माद की कविताएं हैं, वास्तव में जीवन को हर परिस्थिति में जीने की प्रेरणा देने वाली कविताएं हैं।


डॉ. रजनी प्रताप

हिन्दी विभाग

पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला

पंजाब


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