अफ़वाहें सच हैं शक के काबिल हूं
सच आ जाता है जुबां पर जाहिल हूं ।
सब अपने घरों के रंगीन पर्दों में कैद
मैं दुनियां जहान के दर्द में गाफिल हूं ।
यकीनन अभी कई आगाज़ बाकी हैं
ज़रा थके इरादों को लेकर बोझिल हूं ।
विरोध की जितनी भी संभावनाएं बनें
लिखो मेरा नाम मैं सभी में शामिल हूं ।
जितना मिटता उतना ही सुकून आया
मैं अपनी ही आहुतियों का हासिल हूं ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र ।
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