Sunday, 14 May 2023

तेरे बड़े सपनों के लिए छोटा हूं मैं

 तेरे बड़े सपनों के लिए छोटा हूं मैं

तेरे हांथ आया सिक्का खोटा हूं मैं ।


कहते फिरते सभी से कि सच्चे हैं

कोई है सामने जो कहे झूठा हूं मैं  ।


रिश्ते नातों को निभाते संभालते

क्या बताऊं कि कितना टूटा हूं मैं ।


उसकी हां तो हां ना को ना समझा 

जैसे कि बिन पेंदी का लोटा हूं मैं ।


गलतियां जहां भी की उसे कबूला है

सुबह का भूला शाम को लौटा हूं मैं ।


डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र 

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