तेरे बड़े सपनों के लिए छोटा हूं मैं
तेरे हांथ आया सिक्का खोटा हूं मैं ।
कहते फिरते सभी से कि सच्चे हैं
कोई है सामने जो कहे झूठा हूं मैं ।
रिश्ते नातों को निभाते संभालते
क्या बताऊं कि कितना टूटा हूं मैं ।
उसकी हां तो हां ना को ना समझा
जैसे कि बिन पेंदी का लोटा हूं मैं ।
गलतियां जहां भी की उसे कबूला है
सुबह का भूला शाम को लौटा हूं मैं ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र
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