श्री रामचरित मानस के अंतर्गत लंका कांड में निम्नलिखित दो चौपाई आती है। इन्हें पढ़ते हुए कुछ जिज्ञासा हुई।
चौपाई
सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥
अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता॥4॥
भावार्थ
पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार- ये जगत में बार-बार होते और जाते हैं, परन्तु जगत में सहोदर भाई बार-बार नहीं मिलता। हृदय में ऐसा विचार कर हे तात! जागो॥4॥
यहां मन में एक जिज्ञासा हुई कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने सहोदर शब्द का उपयोग क्यों किया ? राम एवं लक्ष्मण सहोदर भाई तो नहीं थे । सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण एवं कौशल्या पुत्र श्री राम जी थे । विद्वत जन सहायता करें।
इसी लंका कांड में आगे एक और चौपाई आती है कि
चौपाई
अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥
निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥7॥
भावार्थ
अब तो हे पुत्र! मेरे निष्ठुर और कठोर हृदय यह अपयश और तुम्हारा शोक दोनों ही सहन करेगा। हे तात! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र और उसके प्राणाधार हो॥7॥
यहां भी लक्ष्मण को "निज जननी के एक कुमारा" वाली बात भी समझ में नहीं आ रही। जब कि सुमित्रा के दो पुत्र थे लक्ष्मण और शत्रुघ्न ।
विद्वान साथी सहायता करें।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र ।
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