तेरे हुस्न को इश्क का नजराना चाहिए
इतराओगे कैसे सामने आईना चाहिए।
उठाओ अपनी पलकों से नखरे उसके
मियां मेहनत करो यदि खज़ाना चाहिए।
जैसे शेर को सुनने का एक सलीका है
वैसे ही सुनाने के लिए फसाना चहिए।
वैसे तो चोरी बुरी है तौबा करो लेकिन
मामला दिल का हो तो चुराना चाहिए।
न देखे पलट तो तुम ही पलट जाओ
हक है तुम्हें थोड़ा तो इतराना चाहिए।
हो सकता है वो मिलते ही गले लगा ले
सो मिलने जाने से पहले नहाना चाहिए।
इश्क की राहों में इतना संभलना कैसा
मौका मिले तो तुरंत फिसलना चाहिए।
तुम्हें मुबारक हों बुतखाने दुनियावालों
शाम ढलते ही हमको मयखाना चाहिए।
उनकी हो शादी तो दावत उड़ाते कहना
तुम पर बर्बाद वक्त का हरजाना चाहिए।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र ।
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