आ गया खयाल तेरा नींद उड़ गई
तेरी हर बात से बात मेरी जुड़ गई ।
जो पसंद है तुम्हें मैंने वही बात की
फिर बात बात पर तुम कैसे लड़ गई ।
मैंने चाहा था तुम्हें ये अलग बात है
बात ही बात में बात फिर बिगड़ गई ।
मैं अकेला हो गया दूर तुम चली गई
मेरी आवाज़ पर जाने क्यों चिढ़ गई ।
सालों बाद फिर मिले अनमने से लगे
हमारे बीच में कहीं कोई गांठ पड़ गई ।
जब लिपट के दोनों ही रोए ज़ार ज़ार
आंखों ही आंखों में आंख फिर गड़ गई ।
आंसुओं से धुल गया जो भी मलाल था
रुकी - रुकी प्यार की बात फिर बढ़ गई ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र
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