तुम्हें सोचकर अक्सर बहक जाता हूं
ले लिया तेरा नाम तो महक जाता हूं।
कूचे यार में हुए आवारगी के किस्से
जब याद आते हैं तो चहक जाता हूं।
तुम्हें देख कर बढ़ जाता है रक्तचाप
बात करना तो चाहूं झिझक जाता हूं।
भरे बाज़ार नीलाम कोई अस्मत हुई
ऐसी खबरों को पढ़ सनक जाता हूं ।
हालात बड़े बेहतर बताए जा रहे हैं
हकीकत जान के मैं दहक जाता हूं।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
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