सूखे कई गुलाब किताब में रह गए
हम यूं जिंदगी के हिसाब में रह गए ।
मैंने सोचा आज तो ईद मुबारक होगी
वो चांद आया पर हिजाब में रह गए ।
कुछ न बन पाए तो जहीन बन गए
यूं हर एक को करते आदाब रह गए ।
सवाल सारे गलत थे जो जिंदगी में
हम उलझे उनके ज़बाब में रह गए ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
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