Wednesday, 24 June 2009

अब तुझसे क्यूँ है मिलना ?

अब उनसे क्यूँ है मिलना ?
क्यूँ भावो का फिर से खिलना ?
राहों में तुमने राह बदल दी ,
भावों में अभिप्राय बदल दी ;
रिश्तों की कठिनाई से भागी ,
कब अपनी सच्चाई पे जागी ;
उन लम्हों से फिर क्यूँ है जुड़ना ;
क्यूँ आधे जजबातों से मिलना ;
तुझको दिल की झंकार न भायी ;
तेरे प्यार की खुसबू मुरझाई ,
खोयी थी तू अपने ही सुख में ;
खोयी थी पैसों के बंधन में ;
तुजे चाहिए था इक रुतबा ,
प्यार नही अंहकार का जज्बा ;
गले लगाता था जिसको मैं ;
उनसे हाथ milaane क्यूँ है मिलना ;
फिर मिलके क्यूँ है टूटना /
उन होठों पे पुकार न होगी ;
वछों को सिने की दरकार न होगी ;
न मिलन की aah मन में ,
na bahon ki chah tan me ;
nayan न ढूंढेंगे नयनो को ;
भावों में पुकार न होगी ;
पत्थर से क्या बयां करूँगा ;
कोयले को कैसे गले का हार करूँगा ?
क्यूँ मिलाने kअ व्यवहार करूँ मै ;
क्यूँ ख़ुद पे अत्याचार करूँ मै ?




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