Tuesday, 9 June 2009

अब आ भी जावो

अब आ भी जाओ ;

चाँदनी रात में तेरे चेहरे के नूर को तरसी हैं आखें ;

सुहानी शाम में तेरी चहकती आवाज को ,

उड़ते गेशुओं से आनंदित प्यास को ,

अपनो की भीड़ में निगाहों से निगाहों के मिलाने के अंदाज को ,तरसी है निगाहें ;

अब आ भी जावो ;

सरदी की सुबहों में तेरे बदन को आगोश में भरने को ,

तेरी महकती सांसों से सांसों को बहकने को ,

तन की सरगोशियाँ बढाते तन को ,

बहकती हुयी प्यास को बढाते बेकाबू हाथ को तरशी हैं बाहें ;

अब आ भी जावो /

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित

 डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित  दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...