हिन्दी भाषा का इतिहास अत्यंत समृद्ध और विस्तृत है। इसका उद्भव भारतीय उपमहाद्वीप में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के विकास क्रम से हुआ। हिन्दी की विकास यात्रा को मुख्यतः तीन प्रमुख चरणों में बाँटा जाता है:
1. प्रारंभिक अवस्था (आदि काल)
यह काल 7वीं से 10वीं शताब्दी तक माना जाता है। इस समय अपभ्रंश भाषाओं का प्रभाव था, जो संस्कृत और प्राकृत से विकसित हुई थीं। यही अपभ्रंश भाषाएँ आगे चलकर हिन्दी की आधारशिला बनीं।
2. मध्यकाल (भक्ति काल और रीतिकाल)
13वीं से 18वीं शताब्दी तक हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम युग रहा।
भक्ति काल (14वीं-17वीं शताब्दी): इस दौर में कबीर, तुलसीदास, सूरदास, मीरा बाई जैसे महान कवियों ने जनभाषा में काव्य रचनाएँ कीं। अवधी और ब्रजभाषा प्रमुख थीं।
रीतिकाल (17वीं-18वीं शताब्दी): इस काल में श्रृंगार रस प्रधान रचनाएँ लिखी गईं। बिहारी, केशवदास, भूषण आदि रीतिकालीन कवि प्रमुख हैं।
3. आधुनिक काल
19वीं शताब्दी से हिन्दी ने एक नई दिशा पकड़ी। भारत में राष्ट्रीय चेतना के साथ हिन्दी को एक संपर्क भाषा के रूप में पहचान मिली।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को आधुनिक हिन्दी साहित्य का जनक कहा जाता है।
20वीं शताब्दी में महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा जैसे लेखकों ने हिन्दी गद्य और पद्य को नई ऊँचाइयाँ दीं।
स्वतंत्रता के बाद
1949 में हिन्दी को भारत के संविधान में राजभाषा का दर्जा मिला। इसके बाद हिन्दी का प्रसार शैक्षणिक, प्रशासनिक और तकनीकी क्षेत्रों में निरंतर बढ़ा।
संक्षेप में:
हिन्दी भाषा का इतिहास संस्कृत से लेकर आधुनिक हिन्दी तक एक निरंतर विकास यात्रा है, जिसमें जनभाषा, साहित्य, संस्कृति और राष्ट्रीय एकता के स्वर मुखरित होते रहे हैं।
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