तमिल भाषा का इतिहास अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। यह विश्व की सबसे पुरानी जीवित भाषाओं में से एक मानी जाती है। आइए इसके इतिहास को संक्षेप में समझते हैं:
1. प्रारंभिक काल (ईसा पूर्व 500 - ईसा पूर्व 100)
तमिल भाषा की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा परिवार से मानी जाती है। तमिल का सबसे पहला लिखित रूप संगम साहित्य में मिलता है, जो लगभग 2300-2000 वर्ष पुराना है। इसे संगम युग कहा जाता है। इस काल में प्रेम, युद्ध, समाज, प्रकृति आदि विषयों पर सुंदर कविताएँ लिखी गईं।
2. संगम काल (300 ईसा पूर्व - 300 ईस्वी)
यह तमिल साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है। इस युग के प्रमुख ग्रंथों में एतुत्तोकाई, पट्टुपाट्टु, और तोल्काप्पियम प्रमुख हैं। तोल्काप्पियम तमिल व्याकरण का सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
3. मध्यकाल (600 ईस्वी - 1200 ईस्वी)
इस काल में भक्ति आंदोलन का प्रभाव पड़ा। नयनार (शैव भक्त) और आलवार (वैष्णव भक्त) कवियों ने तमिल में कई भक्ति गीत रचे। उदाहरण के लिए:
- तिरुवासगम (मणिक्कवाचार द्वारा)
- नालायिर दिव्य प्रबंधम (आलवार संतों द्वारा)
4. नवीन काल (1200 ईस्वी - 1800 ईस्वी)
इस समय तमिल भाषा पर संस्कृत का प्रभाव दिखने लगा। कई धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ तमिल में लिखे गए। चोल, पांड्य, और विजयनगर साम्राज्य के संरक्षण में तमिल साहित्य फला-फूला।
5. आधुनिक काल (1800 ईस्वी - वर्तमान)
ब्रिटिश शासन के दौरान तमिल में अखबार, पत्रिकाएँ, और उपन्यास लिखे जाने लगे। उम्मू सुगुननार, भारतिदासन, सुब्रमण्य भारती जैसे लेखकों ने आधुनिक तमिल साहित्य को नई दिशा दी।
6. वर्तमान स्थिति
आज तमिल भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है और तमिलनाडु राज्य की प्रमुख भाषा है। तमिल को संयुक्त राष्ट्र द्वारा क्लासिकल लैंग्वेज (Classical Language) का दर्जा प्राप्त है। श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर और दुनिया के अन्य हिस्सों में भी तमिल भाषी बड़ी संख्या में हैं।
संक्षेप में:
तमिल भाषा की जड़ें प्राचीन इतिहास में हैं। यह साहित्य, व्याकरण और संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है और आज भी अपने मूल स्वरूप को सजीव रूप में बनाए हुए है।
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