Monday, 24 March 2025

शहर की सड़कों का सौंदर्य

 

शहर की सड़कों का सौंदर्य

       

        

                    शहर की सड़कों का सौंदर्य किसी चित्रकार की अधूरी पेंटिंग की तरह है—जिसमें हर ब्रश स्ट्रोक अधूरे ख्वाबों और पूरे होते सपनों के रंगों से रंगा है। ये सड़कें केवल ईंट, पत्थर और डामर का मेल नहीं हैं; यह आत्मा की गलियों, जीवन की उलझनों और समय की नब्ज़ का प्रतिबिंब हैं। हर सड़क एक कहानी कहती है, हर मोड़ किसी दबी हुई पीड़ा या अप्रत्याशित खुशी का संकेत है। सड़कों पर खिंची सफेद पीली रेखाएँ जैसे जीवन की सीमाओं का बिंब हैं। वे हमें निर्देशित करती हैं, लेकिन हम जानते हैं कि सीमा रेखाएँ स्थायी नहीं होतीं। किसी मोड़ पर, वह धुंधली पड़ जाती हैं; जैसे समय के साथ स्मृतियाँ धुंधली हो जाती हैं। शहर की सड़कें रात में अपने असली सौंदर्य में निखरती हैं। पीली, सफेद या कभी-कभी नीली लाइट्स में नहाई सड़कें जैसे स्वप्नलोक का हिस्सा लगती हैं। बिजली के खंभे रात के संतरी हैं, जो जागते रहते हैं जब पूरी दुनिया सो रही होती है।उनकी लंबी परछाइयाँ उन अधूरी इच्छाओं का बिंब हैं, जिन्हें हम दिन के उजाले में छुपा लेते हैं, मगर रात की खामोशी में वे परछाइयों की तरह लंबी खिंच जाती हैं। हर खंभा एक प्रतीक है—आस्था का, इंतज़ार का, और उस उजाले का जो भीतर तक चीर जाए। वे रेखाएँ किसी पुराने प्रेम-पत्र की तहों में पड़ी इबारतों जैसी हैं—जिन्हें समझने के लिए बार-बार पढ़ना पड़ता है।

                सड़क की हर रेखा एक रिश्ते का नक्शा है—कभी पास ले आता है, कभी दूर कर देता है।  फुटपाथ किसी किताब का हाशिया है, जिस पर जीवन के सबसे कच्चे, सबसे सच्चे नोट्स लिखे गए हैं। वे उन आवाज़ों के प्रतीक हैं जिन्हें मुख्यधारा का पृष्ठ सुन नहीं पाता, पर वे सड़क के असली सौंदर्य में रंग भरते हैं। सिग्नल पर रुकना जीवन के उन क्षणों जैसा है जब हम निर्णय की दहलीज़ पर खड़े होते हैं। लाल, हरा, पीला… ये रंग केवल यातायात के नहीं हैं; वे मन के भीतर चल रही इच्छाओं, भय और उम्मीदों के संकेतक हैं। हर बार जब सिग्नल हरा होता है, यह हमें चलने का आदेश देता है, पर भीतर का कोई कोना ठहरने को कहता है। शहर की सड़क का सिग्नल आत्मा के भीतर जलती-बुझती आशाओं का दर्पण है। शहर की हर सड़क पर कोई न कोई दरार, कोई गड्ढा मिलेगा। ये दरारें उस खिंचाव की निशानियाँ हैं जिसे समय और भीड़ ने सड़क पर छोड़ा है। वे अपूर्णता के सौंदर्य का प्रतीक हैं। बारिश में जब सड़क पर पानी की परत चढ़ जाती है, वह शहर के चेहरे का दर्पण बन जाती है। हर लाइट, हर पेड़, हर आदमी सड़क पर झलकता है। यह प्रतिबिंब हमें बताता है कि बाहर जो है, वह भीतर का ही विस्तार है। रात के तीसरे पहर, जब ट्रैफिक थम जाता है, सड़क के किनारे की दुकानों के शटर गिर जाते हैं, और हवा में सिर्फ सन्नाटा तैरता है—तब सड़कें आध्यात्मिक हो जाती हैं। शहर की सड़कें कभी स्थिर नहीं होतीं। उन पर दौड़ती बसें, ऑटो, साइकिल, कारें जीवन की गति का प्रतीक हैं। हर वाहन एक चरित्र है, हर हॉर्न एक संवाद।

 

वे हमें बताते हैं कि ज़िंदगी एक भीड़ है, जिसमें हम सब अपनी-अपनी दिशा में भाग रहे हैं, मगर कभी-कभी एक मोड़ पर किसी अनजान चेहरे से आंखें टकरा जाती हैं—और सड़क एक नई कहानी रच देती है। सड़कों के किनारे लगी दीवारों पर चिपके पोस्टर समय के दस्तावेज़ हैं। चुनावी वादे, फिल्मी पोस्टर, गुमशुदा की सूचना—सब मिलकर दीवार को जीवन के विविध रंगों से रंग देते हैं।

 

ये पोस्टर उस समाज के मनोविज्ञान का प्रतीक हैं, जो हमेशा नया ओढ़ता है, मगर पुरानी परतें पूरी तरह उतरती नहीं। शहर की सड़कें दीवारों पर टंगे इन शब्दों के सहारे इतिहास को पलटती हैं। वे आत्मा के भीतर पसरे उस सुनसान रास्ते का बिंब बन जाती हैं जहाँ हम केवल अपने ही पदचिह्नों की आवाज़ सुन सकते हैं। यह वह समय है जब सड़क अपने सबसे गहरे रहस्य हमारे कान में फुसफुसाती है।बारिश की बूँदों से भीगी सड़क एक प्रेमिका की पलकों पर अटकी बूँदों की तरह प्रतीत होती है, जो गिरने से पहले कुछ कह देना चाहती है। जैसे मनुष्य भी अपने भीतर दरारें लेकर चलता है—अतीत के गड्ढे, स्मृतियों की खुरदरी सतह—वैसे ही सड़कें भी पूर्ण नहीं हैं। वे हमें सिखाती हैं कि सौंदर्य केवल चिकनी सतह में नहीं, दरारों में भी है। सड़कें अक्सर जीवन की अनिश्चितताओं और संभावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे हमें नए अनुभवों, चुनौतियों, और अवसरों की ओर ले जाती हैं, जो हमारे व्यक्तित्व और दृष्टिकोण को आकार देते हैं। इसी प्रकार, फुटपाथ, ट्रैफिक, धूल, धूप, पेड़, रिक्शा, चाय की गुमटी, गड्ढे, पोस्टर, कचरे का ढेर, रात की सड़क, दौड़ती गाड़ियाँ, और ज़िंदगी में सड़क जैसे तत्व हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं और अनुभवों का प्रतीक हैं। शहर की सड़कों पर चलना केवल एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना नहीं है; यह एक दार्शनिक यात्रा है जो हमें अद्वैत, अनित्य, माया, आत्मा, और निर्वाण के सिद्धांतों की याद दिलाती है। यह यात्रा हमें सिखाती है कि बाहरी दुनिया में जो कुछ भी हम देखते हैं, वह हमारे भीतर की दुनिया का प्रतिबिंब है। इसलिए, सड़कों पर चलते हुए, हम न केवल बाहरी संसार को समझते हैं, बल्कि अपनी आत्मा की गहराइयों में भी उतरते हैं।

                शहर की सड़कें केवल रास्ता नहीं होतीं; वे मनुष्य के भीतर की यात्रा की भी धुरी हैं। सड़कें ज़मीन पर खिंची लकीरें नहीं, बल्कि समय की सतह पर खिंचे उन अनगिनत रेखाओं की तरह हैं, जिनमें हर जीवन की कहानी दर्ज है। कभी ये सड़कें हमें कहीं पहुँचाती हैं, कभी खुद हमारे भीतर आकर ठहर जाती हैं। दरअसल, सड़क पर ज़िंदगी चलती नहीं, बहती है—और कभी-कभी, ज़िंदगी में भी कोई सड़क बन जाती है, जिस पर रिश्तों, सपनों और स्मृतियों के क़ाफ़िले गुज़रते हैं। सड़क पर फैली ज़िंदगी किसी लंबी, रेंगती रेखा की तरह है, जो कहीं पर भी ठहरती नहीं। मज़दूर के हाथ में भरी ईंटें, सब्ज़ी वाले की ठेली, ऑफिस के झोले, सब इसी रेखा के सहयात्री हैं। सड़क पर ज़िंदगी कभी सरल रेखा नहीं; वह वक्र है, उलझी हुई, मगर सतत। कभी-कभी ज़िंदगी के भीतर भी कोई सड़क बन जाती है—बीते बचपन की गली, कॉलेज के दिन, पहली नौकरी का रास्ता। स्मृति के आँगन में ये सड़कें बिना आवाज़ के चलती हैं। मन जब थकता है, ये पगडंडियाँ लौटकर वही पुरानी मुस्कान ले आती हैं।

              सड़कें किसी शरीर की नसों के समान हैं। जैसे नसों में लहू दौड़ता है, वैसे ही इन सड़कों में लोगों का जीवन बहता है—बसों में, स्कूटर पर, पैदल, दौड़ते कदमों में। हर ट्रैफिक सिग्नल, हृदय की धड़कन जैसा है—कभी रुकना, कभी बढ़ना, कभी ठहरना। सड़कें भीतर की बेचैनी की बाहरी अभिव्यक्ति हैं। भागती गाड़ियों की कतारें समय के पिंजरे में फँसे परिंदों जैसी हैं। कभी हरी बत्ती मिलती है तो परिंदे उड़ते हैं, कभी लाल बत्ती पर रुककर खुद की परछाई से आँख मिलाते हैं। हर गाड़ी के शीशे में कोई अनकही कहानी, कोई उलझा सपना सवार है। धूल सिर्फ मिट्टी नहीं; यह उन उम्मीदों की राख है जो किसी मोड़ पर बुझ गईं। दोपहर की तपती धूप जैसे कर्ज़ का बोझ ढोती है—सीने पर तपी हुई लोहे की छड़ जैसी। हर पसीना टपकता है, और सड़क पर गिरकर अपने भीतर छुपी चिंता के बीज बोता है। दीवारों पर चिपकी पीक, उस गुस्से और बेबसी की निशानी है जिसे आदमी रोज़ भीतर निगलता है, और शाम होते-होते किसी दीवार पर उगल देता है। वह थूक, दरअसल, एक समाज की जमी हुई निराशा है।

 

             शहर की सड़कों का अपना एक संगीत होता है, जो दिन-रात निरंतर बजता रहता है। सुबह की पहली किरण के साथ ही यह संगीत शुरू हो जाता है। अखबार बेचने वाले की आवाज़, दूधवाले की साइकिल की घंटी, स्कूल बसों का हॉर्न, और ऑफिस जाने वालों की चहल-पहल—यह सब मिलकर एक सिम्फनी का निर्माण करते हैं। यह संगीत हमें जीवन की निरंतरता का एहसास कराता है, जहाँ हर व्यक्ति अपनी धुन में मग्न है। सड़कों के किनारे बसे फुटपाथ केवल पैदल यात्रियों के लिए ही नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए भी हैं जिनकी ज़िंदगी वहीं गुजरती है। रेहड़ी-पटरी वाले, जो अपनी छोटी-छोटी दुकानों में बड़े सपने संजोए बैठे हैं। उनके चेहरे पर मेहनत की लकीरें और आँखों में उम्मीद की चमक साफ दिखाई देती है। वे जानते हैं कि यह फुटपाथ ही उनकी रोज़ी-रोटी का जरिया है, और इसी पर उनकी दुनिया टिकी हुई है। सड़कों पर चलते हुए हमें बुजुर्ग लोग भी दिखाई देते हैं, जो अपने अनुभवों की गठरी लिए चलते हैं। उनकी आँखों में जीवन का लंबा सफर और चेहरे पर समय की लकीरें होती हैं। वे हमें जीवन के इन सड़कों के हर मोड़ पर गिरा पड़ा है किसी का टूटा हुआ सपना, तो कहीं किसी की उम्मीद का दुपट्टा लहरा रहा है। मूल्य और समय की महत्ता का पाठ पढ़ाते हैं। यह सब सड़कों को एक जीवंत कला गैलरी में बदल देते हैं। हर सिग्नल पर रुकती गाड़ियों के शीशों में कांच की दीवार के इस पार एसी की ठंडक है, और उस पार फूल बेचते बच्चे की तपती हथेलियाँ। ऑटो के हॉर्न, बस की चीख, और तेज रफ्तार कारों की सर्राहट—ये शोर नहीं, किसी अजनबी की बेचैनी का राग है।

             सड़क के पत्थरों पर हर सुबह सपनों के छींटे गिरते हैं, शाम तक न जाने कितने पाँव रौंदकर,उन्हें धूल में मिला जाते हैं। एक ही सड़क के दो किनारे, एक पर बीएमडब्ल्यू के पहिए, दूसरे पर नंगे पाँव किसी भूखे की एड़ियाँ घिस रही हैं। एक हाथ में घड़ी की चमक, दूसरे में कटोरे की झंकार— दोनों ही समय के गुलाम, पर एक समय बेच रहा है, दूसरा समय माँग रहा है। कागज की नाव बारिश की नालियों में बहती है, और सड़क पर खेलते बच्चे ज़िन्दगी से बेख़बर अपने खिलौनों से समय को मात दे रहे होते हैं। शहर की सड़कें जैसे काँच की पारदर्शी नसें— इनमें हर वक़्त लोहू के बजाय दौड़ती है भागती, थकती, उलझती भीड़। फुटपाथ पर सोया मज़दूर जैसे टूटी नाव पर लेटा मल्लाह, समंदर उसकी आँखों में हिलोरें मारता है, पर उसके पाँव धरती की चट्टान से बँधे हैं। उसकी नींद में भी आसमान के सूराख से गिरती रहती है कोई पुरानी चिंता। हर नुक्कड़ पर थूक दी जाती है किसी के भीतर की कसैली हताशा। लाल पीक की छींटों में दीवारें रंगीन नहीं, बल्कि शर्मसार होती हैं— ये वो सपने हैं जो चबाकर थूक दिए गए।

                नुक्कड़ पर उबलती चाय की केतली, व्यस्त जीवन में एक विराम की तरह है। प्याली में घुलती चीनी जितनी मीठी है, उतनी ही कड़वी होती हैं वे बातें, जो चाय के घूँटों के साथ उतरती हैं। हर नुक्कड़ पर उबलती केतली, एक तपते तवे की तरह है। हर चाय की प्याली में घुला है किसी की अधूरी नींद, किसी का ऑफिस में डाँट खाया दिन, तो किसी आशिक का इंतज़ार। एक गिलास चाय में भाप बनकर उड़ते हैं—कर्ज़, प्रेम, तनाव, और राहत। सड़क किनारे उबलती केतली और टपकती चाय जैसे किसी साधारण ज़िंदगी का खौलता धैर्य। कांच के गिलास में झाग नहीं, अधूरी नींद, सुबह का तनाव और सस्ती राहत भरी होती है। रिक्शेवाले की पसलियाँ काँपती हैं। उसके पसीने में घुला है किसी गाँव की मिट्टी, किसी बच्चे की फीस, किसी पत्नी की दवाई। रिक्शे के पहिए जैसे जीवन के चक्र—कभी आगे, कभी पीछे, लेकिन ठहराव कहीं नहीं। हर पैडल संघर्ष का प्रतीक है, हर मोड़ उम्मीद का। हर खंभे पर फटे पोस्टर, झुकी रस्सियों में लटके बैनर— जैसे चेहरे पर चिपकाए गए नकली मुस्कान के मास्क। हर नेता, हर सेल ऑफर, फीके रंगों में सच को ढँकने की कोशिश करता है। फटे पोस्टरों में झाँकता है बीता हुआ चुनाव, अधूरी स्कीम, या कोई पुरानी फिल्म। ये पोस्टर दीवार की दरारें ढकने की नाकाम कोशिश करते हैं, जैसे समाज अपने घावों पर चमकदार पट्टियाँ बाँधना चाहता है।

                  बारिश के बाद सड़क पर उभरते गड्ढे जैसे ज़िन्दगी में अचानक गिरने वाले खालीपन। इनमें झाँककर देखो, तो दिखाई देती है किसी मजदूर की फिसलन, किसी स्कूली बच्चे की चोट, या किसी सरकार की मरम्मत की टालमटोल। बारिश के बाद गड्ढों में भरा पानी उन आँखों जैसा है, जिनमें इंतज़ार भी है और अनकहा ग़म भी। रात में जब सड़कें वीरान होती हैं, तब वे आत्मा की परछाई बन जाती हैं। स्ट्रीट लाइट के नीचे पसरी चुप्पी, भीतर की खामोशी का विस्तार है। हर परछाईं लंबी होती है, जैसे बीते रिश्तों की, भूले वादों की। जब शाम की बत्तियाँ जलती हैं, तो सड़क किसी वृद्ध की आँखों में हल्की धुँधली रौशनी-सी लगती है। कुछ नीम रौशन, कुछ बुझी-बुझी। हर खंभे के नीचे किसी की परछाईं लंबी होती जाती है— जैसे कोई याद जो पीछा नहीं छोड़ती। कहीं एक तांत्रिक भिखारी, कहीं खोई हुई स्त्री, तो कहीं कोई आवारा कुत्ता—सबकी परछाईं सड़क के धागों में उलझी। शहर की सड़कों को अगर केवल पत्थर, डामर और सीमेंट का जाल समझा जाए, तो यह उनकी आत्मा के साथ अन्याय होगा। इन सड़कों में समय की गंध है, इतिहास के निशान हैं, और वर्तमान के पसीने की नमी है।

                      हर सुबह सूरज के ताब में नहाई सड़कें, शाम को पीली बत्तियों में किसी अधजली बीड़ी-सी बुझने लगती हैं। सड़कों के हर चौराहे पर भागती भीड़ की आँखों में कोई न कोई सपना चमकता है—कभी टूटा, कभी झिलमिलाता। सड़कों पर चढ़ी धूल कोई साधारण मिट्टी नहीं; यह उन अधूरे वादों की परत है, जो हर चुनाव बाद फिज़ा में उड़ा दिए जाते हैं। दोपहर की धूप, जैसे किसी भिखारी की झुलसी रोटी, हर फुटपाथ पर बिछी रहती है। हर पाँव से धूल उड़ती है, हर सांस में गर्म हवाओं का कड़वापन घुलता है। गली के कोने पर पड़ा कूड़े का ढेर उस सामूहिक अपराधबोध की तरह है, जिसे शहर के लोग हर सुबह अनदेखा कर देते हैं। प्लास्टिक की थैलियाँ, टूटी बोतलें और बासी उम्मीदें—ये सब वो चीजें हैं, जिन्हें हम नकारना चाहते हैं। वह ढेर शहर के अवचेतन का अंधेरा कोना है। गली के मोड़ पर पड़ा कचरे का ढेर दरअसल वे बातें हैं जिन्हें हम हर रोज़ अनदेखा करते हैं—व्यवस्था की असफलता, रिश्तों की उपेक्षा, अधूरी इच्छाएँ। वह ढेर हमारी सामूहिक स्मृतिहीनता का प्रतीक है।

                  शहर की सड़कें केवल यातायात का साधन नहीं, बल्कि समय, समाज और व्यक्ति के संघर्ष, हर्ष, पीड़ा और आशा की चलती-फिरती किताब हैं। हर फुटपाथ पर एक कविता है, हर गड्ढे में एक अधूरी कहानी, और हर मोड़ पर प्रतीकों में सना जीवन। बस, ज़रूरत है इन सड़कों पर थमकर देखने की, सुनने की, महसूस करने की। सड़क और ज़िंदगी के बीच का रिश्ता सतही नहीं है। दोनों एक-दूसरे के भीतर समाए हुए हैं। सड़क पर चलते हुए हम जितनी दूर जाते हैं, उतनी ही दूर अपने भीतर भी उतरते हैं। हर मोड़, हर गड्ढा, हर फुटपाथ हमारे भीतर का प्रतीक है। जीवन की गति, संघर्ष, ठहराव और अंत—all mirrored on the streets. बस ज़रूरत है, उन सड़कों को बाहर और भीतर, दोनों जगह देखने की। शहर की सड़क एक जीवित कविता है, जिसमें हर मोड़, हर गली, हर चौराहा एक अलग छंद है। यह सड़क केवल भौतिक मार्ग नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा है। इसमें संबंधों की पेचदार गलियाँ हैं, इच्छाओं के अधूरे चौराहे हैं, और सपनों के लंबे फ्लाईओवर हैं। शहर की सड़कें सिखाती हैं कि सुंदरता स्थिरता में नहीं, प्रवाह में है। वे बताती हैं कि हर गड्ढा, हर मोड़, हर भीड़, हर सन्नाटा जीवन का ही प्रतिबिंब है।

            यह सौंदर्य उस क्षण में है जब हम तेज़ चलती भीड़ में अचानक रुक कर आसमान की ओर देखते हैं, या जब रात के सन्नाटे में सड़क पर अकेले चलते हुए अपनी धड़कनों की आवाज़ सुनते हैं। शहर की सड़कें हमें अपने भीतर की सड़क से परिचित कराती हैं। वह सड़क, जो जीवन के हर मोड़ पर नए प्रतीकों, नए बिंबों और नए भावों से सजती रहती है। शहर की सड़कें बाहर से जितनी ठोस, जितनी व्यस्त दिखती हैं, भीतर से उतनी ही कवितामयी और भावपूर्ण हैं। वे हमारे भीतर की उन यात्राओं का विस्तार हैं, जिनमें हम रोज़ गुजरते हैं—कभी भीड़ में खोते हुए, कभी किसी मोड़ पर खुद को पाते हुए। इन सड़कों का सौंदर्य स्थिरता में नहीं, प्रवाह में है। वह सौंदर्य उस क्षण में है जब हम अचानक रुककर आसमान की ओर देखते हैं, या किसी अजनबी के मुस्कान में खुद को पहचानते हैं। शहर की सड़कें हमें सिखाती हैं कि जीवन की असली सुंदरता उन दरारों, प्रतीक्षाओं, मोड़ों और ठहरावों में छुपी है जिन्हें हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। यह सड़क केवल शहर की नहीं, आत्मा की है। एक ऐसी सड़क, जो हर मोड़ पर नए बिंब, नए प्रतीक, नए अर्थ रचती है।

शहर की सड़कें केवल कंक्रीट, डामर और रेत से बनी भौतिक संरचनाएँ नहीं हैं। वे जीवित प्राणी हैं, जो समय के साथ सांस लेती हैं, बदलती हैं, और जीवन के प्रवाह को अपने भीतर समेटे चलती हैं। शहर की सड़कों का सौंदर्य उस कविता की तरह है, जो शब्दों के पार जाकर भावनाओं के स्पर्श से मन को छूती है। ये सड़कें हमारे भीतर की यात्राओं की तरह हैं—कभी सीधी, कभी पेचदार, कभी उजली, कभी धुंधली। हर मोड़, हर गली, हर दरार जीवन के किसी न किसी पहलू का प्रतीक है। शहर की सड़कों पर खिंची सफेद और पीली रेखाएँ जैसे जीवन के नक्शे में खिंची सीमाओं का प्रतीक हैं। ये रेखाएँ हमें रास्ता दिखाती हैं, मगर साथ ही याद दिलाती हैं कि हर सीमा अस्थायी है। समय की धाराओं में बहते हुए, ये रेखाएँ धुंधली हो जाती हैं, मिटती हैं, फिर से खिंचती हैं—बिलकुल वैसे ही जैसे जीवन में रिश्तों, सपनों और इच्छाओं की सीमाएँ बदलती रहती हैं।

 

यहाँ हर रेखा एक संवाद है—एक मौन संकेत, कि हम चलें, रुकें, मुड़ें या ठहरें। कभी-कभी ये रेखाएँ उन संबंधों की याद दिलाती हैं, जिनके बीच खिंची लकीरें हमें परिभाषित करती हैं। शहर की सड़कों पर फैली लाइट्स, खंभों पर टंगी बिजली की तारें, रात के पहरेदारों की भांति हैं। वे हर अंधेरे को रोशन करती हैं, पर साथ ही उनकी रोशनी में अनगिनत परछाइयाँ भी जन्म लेती हैं।इन लाइट्स में नहाई सड़कें किसी स्वप्नलोक की गलियों जैसी प्रतीत होती हैं। हर खंभा अपने भीतर इंतज़ार का प्रतीक है—मानो वह हर आने-जाने वाले से कोई कथा कहना चाहता हो। रात की नीरवता में ये लाइट्स आत्मा के भीतर की उनींदी इच्छाओं को रोशन करती हैं। फुटपाथ एक ऐसी किताब का हाशिया है, जिस पर लिखे शब्द जल्दी-जल्दी में लिखे गए नोट्स की तरह हैं—कच्चे, पर बेहद सच्चे। सिग्नल के इंतजार में थमा समय हमें खुद से परिचित कराता है। जैसे जीवन में कुछ पलों का ठहराव जरूरी होता है, वैसे ही ये रुकावटें भीतर झाँकने का अवसर देती हैं। किसी भी सड़क पर चलते हुए गड्ढे मिलेंगे, दरारें मिलेंगी। ये दरारें जीवन की उन क्षणिक टूटनों का प्रतीक हैं, जिन्हें हम अक्सर छुपाना चाहते हैं। लेकिन यहीं पर सड़क का सौंदर्य सबसे प्रखर है। जैसे हर मनुष्य अपने भीतर दरारों के साथ ही सुंदर है, वैसे ही सड़कें भी अपनी अपूर्णता में पूर्ण हैं। ये हमें सिखाती हैं कि असली सुंदरता त्रुटियों में है, क्योंकि वही हमें मानव बनाती हैं।

             जब बारिश होती है और सड़क पर पानी की परत चढ़ जाती है, तब सड़क किसी आईने में बदल जाती है। हर लाइट, हर पेड़, हर चेहरा उसमें झलकता है। यह दृश्य हमें भीतर के प्रतिबिंबों की याद दिलाता है—कि जो बाहर है, वही भीतर है। बारिश में चमकती सड़क किसी प्रेमिका की पलकों पर अटकी बूँद जैसी है, जो गिरने से पहले कुछ कहना चाहती है। हर बूंद में एक कहानी है, हर छींटे में कोई भूला हुआ गीत। रात के तीसरे पहर, जब शहर की रफ्तार थम जाती है, सड़कें अपने सबसे गहरे सौंदर्य में प्रकट होती हैं। खाली सड़कें, बंद दुकानें, दूर कहीं भौंकता कुत्ता—यह सन्नाटा आत्मा के भीतर फैले उस रिक्त स्थान का प्रतीक है जहाँ केवल हम और हमारे विचार होते हैं। यह वही समय है जब सड़कें हमारे भीतर चल रही यात्राओं से संवाद करती हैं। वे हमें अपने ही भीतर के रास्तों पर चलने का निमंत्रण देती हैं। सड़कों के किनारे लगी दीवारों पर चिपके पोस्टर, बैनर, विज्ञापन समय के दस्तावेज़ हैं। वे उस समाज के मनोविज्ञान का प्रतिबिंब हैं, जो हमेशा नया ओढ़ता है लेकिन पुरानी परतें पूरी तरह उतरती नहीं । फटी-पुरानी दीवारों पर चिपके नए-पुराने पोस्टर जीवन के उस पहलू का प्रतीक हैं जिसमें हम अपने अतीत के ऊपर वर्तमान के रंग चढ़ाते हैं। हर पोस्टर, हर दीवार एक कथा कहती है—कभी अधूरी, कभी पूरी।

 

 

 

 

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