मुगल शासन में "हिजड़े" (या "खास्सी" या "खाजा सरा") एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक वर्ग का हिस्सा थे। हिजड़े शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता था, जिन्हें बचपन में ही शारीरिक रूप से नपुंसक बना दिया जाता था (अक्सर जबरन)। इस प्रक्रिया को नपुंसक बनाने की प्रथा (Castration) कहा जाता था। इसे कई कारणों से अपनाया गया:
हिजड़ों की भूमिका मुगल शासन में:
महल की सुरक्षा:
हिजड़ों को हरम (महल के अंदर महिलाओं के निवास स्थान) की रक्षा और देखभाल के लिए नियुक्त किया जाता था।
चूंकि वे नपुंसक होते थे, इसलिए उन्हें महिलाओं के करीब रहने की अनुमति दी जाती थी, और उन पर विश्वास किया जाता था कि वे महिलाओं के साथ कोई अनैतिक संबंध नहीं बनाएंगे।
प्रशासनिक पद:
कई हिजड़े उच्च प्रशासनिक पदों पर भी नियुक्त किए जाते थे।
वे राजदरबार के अंदरूनी मामलों, खजाने की सुरक्षा और गोपनीय सूचनाओं के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
विश्वासपात्र:
शाही परिवार के बहुत से सदस्य हिजड़ों पर भरोसा करते थे क्योंकि वे वफादार और सत्ता संघर्ष में निष्क्रिय माने जाते थे।
हिजड़े बनाने की प्रथा कैसे शुरू हुई?
यह प्रथा भारत में मुगलों के आगमन से पहले भी मध्य एशिया और फारस में प्रचलित थी।
मुगल शासक अपने साथ इस परंपरा को लेकर आए और इसे भारतीय दरबार में भी अपनाया।
गरीब परिवारों से बच्चों को या तो जबरन लिया जाता था या फिर कुछ परिवार पैसे की लालच में अपने बच्चों को बेच देते थे।
इन बच्चों को नपुंसक बनाकर प्रशिक्षित किया जाता था ताकि वे महल के कामों में दक्ष हों।
समाज में स्थिति:
हिजड़े समाज में सम्मानित भी थे और अलग-थलग भी।
उन्हें शाही संरक्षण मिलता था, लेकिन सामान्य समाज में उन्हें अलग दृष्टि से देखा जाता था।
कई बार उनके पास बड़ी संपत्ति और ताकत भी होती थी।
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