लफ्ज़ लफ्ज़ जो लिखा वो तेरा खयाल है
क्या करूंगा बिन तेरे यही बड़ा सवाल है ।
ख़्वाब कोई है नहीं बढ़ के मुझसे भी बुरा
तुम नहीं तो क्या कहूं ये जिंदगी मुहाल है ।
जाने किस गुनाह की जिंदगी सज़ा रही
नशा रहा तो ठीक था होश पर मलाल है ।
सर्द रात की हवा मुझे लिपट के रो पड़ी
तरह तरह के हादसों में जिंदगी निहाल है ।
रंज और जुनून का जुलूस ले निकल पड़ा
शब्द शब्द उड़ रहा तेरे गालों का गुलाल है ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र।
शानदार गज़ल।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ मई २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बढ़िया गज़ल
ReplyDeleteबहुत उम्दा हृदय स्पर्शी सृजन।
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