'इस बार तेरे शहर में'
‘’संवेदनाएँ
जहाँ असहाय हों
वहाँ
उन्हें दुलराने को
उपस्थित हों सकें
मेरी भी
कविताओं के शब्द।‘’
'इस बार तेरे शहर में' काव्य-संग्रह साहित्य-सृजन के माध्यम से प्रकृति सौंदर्य, मानवीय संवेदनाओं,
दुनियाई तानों-बानों एवम् मनुष्य के सामाजिक सरोकारों की सुंदर अभिव्यक्ति करता है। जीवन के विविध रूपों में नारी की उपस्थिति, चाहे वह माँ हो या प्रेयसी हो, उसका महत्व एवम् सार्थकता को पूरी गहराई के साथ चित्रित किया गया है।
“इन घाटों का तट
तृष्णाओं की तृषिता है।
तने हुए तन का
अंतिम पड़ाव तो
भरे हुए मन का
सम्मोहन केंद्र।“
संग्रह में प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को, बनारस शहर की स्मृतियों को जीवंत रूप से उकेरा गया है। शहर
की गलियाँ, उसके घाट, दुकानें और विविध किरदारो से जुड़े हुए अनुभव ध्यानाकर्षित करते हैं।
“लेकिन
हम भूल गए थे कि
कैमरा
यादों को कैद कर सकता है
लौटा नहीं सकता।“
कई आधुनिक प्रतीकों जैसे चाय का कप, मोबाईल, नेल पॉलिश, कैमरा, पेन, नेलकटर, जूते, विजिटिंग कार्ड इत्यादि का नये संदर्भों में प्रयोग किया गया है।
“जीवन के तीस बसंत बाद
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
तो कई मुस्कुराते चेहरों को पाता हूँ
लगभग हर आँख में
अपने लिए प्यार पाता हूँ
अपने लिए इंतजार पाता हूँ।“
यह काव्य-संग्रह कवि के पिछले तीस सालों का लेखा-जोखा है और उन सभी के प्रति आभार प्रदर्शन भी है जिन्होंने उनका स्वरूप गढ़ने में सहायता की। कवि दिखावे में नहीं अपितु सच्चाई की सहज प्रतिक्रिया में विश्वास करता है।
इस बार
जब तुम्हारे
शहर
में
था
तब
तुम नहीं
मिली
और
नहीं मिला
तुम्हारे शहर
का
वह मौसम
भी
कि जिसका
मैं
दीवाना
हूँ।
'इस बार तुम्हारे शहर में' कविता के माध्यम से जीवन की सच्चाई बतलाई गई है
कि आनंद बाहरी नहीं अपितु आंतरिक तत्त्व है हृदय जब एकाकी, दुःखी और प्रियविहीन हो तो सारे बाहरी उपक्रम बेमानी लगते हैं। अभिव्यक्ति की ताजगी और भाषा का सटीक प्रयोग पाठकों को बांधे रखता है।
डॉ. श्रीमती रीना थॉमस
सहायक प्राध्यापक हिन्दी
संत
अलॉयसियस
स्वशासी
महाविद्यालय
जबलपुर
(म.प्र.)
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