नफरतों का कोई मुस्तकबिल नहीं होता
मोहब्बतों का कोई मुकाबिल नहीं होता ।
जब तक मिल बैठ सलीके से बात न हो
हल कोई भी संजीदा मसाइल नहीं होता ।
रंजिशों का रंज अगर मोहब्बतें मिटा देती
तो उजाड़ मकानों में अबाबिल नहीं होता ।
छोड़कर जानेवाले इतना तुम याद रखना
हर कोई हमारी तरह जिंदादिल नहीं होता ।
यारों का साथ और संगदिली बड़ी चीज़ है
सब के नसीब शौक ए महफ़िल नहीं होता ।
कुछ रास्तों पर ये पांव ख़ुद ही रुक जाते हैं
जब कि वहां कोई भी सलासिल नहीं होता ।
जो मौसमी नालों की तरह बहते बह जाते हैं
उनके नसीब में तो लब ए साहिल नहीं होता ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
हिंदी व्याख्याता
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र ।
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