वो काम सारे मुकम्मल पूरा चाहती हैं
लड़कियां कहां कुछ अधूरा चाहती हैं ।
यूं ही नहीं सज़ा देती हैं घर आंगन को
ये अपनी जिंदगी में सलीका चाहती हैं ।
खिले हुए फूलों को देखकर खुश होती
ये भी उन्हीं की तरह खिलना चाहती हैं ।
उड़ती हुई तितलियों के रंग ढंग देखकर
ये भी तो अपनी मर्जी से उड़ना चाहती हैं ।
बंदरों को डालियों पर उछलता देखकर
ये भी झूले पर देर तक झूलना चाहती हैं ।
सबकुछ लुटा हंसना रोना पसंद है इन्हें
लड़कियां जिंदादिली से जीना चाहती हैं ।
ये परिंदे हैं आसमान में ऊंची उड़ानों के
इन्हें हौसला दो बहुत कुछ करना चाहती हैं ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण पश्चिम,महाराष्ट्र
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