इस बार तुम्हारे शहर में समीक्षा
डॉ उषा आलोक दुबे
हिंदी प्राध्यापिका
एम डी महाविद्यालय
परेल, मुंबई
मनुष्य की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता सर्वोत्तम माध्यम है। व्यक्ति जब भी अकेले रहता है, तो उसके मन में कई विचारों का आवागमन चलता रहता है। विचारों को सुंदर तरीके से समाज के सामने रखना ऐसी कला सबके पास नहीं होती है, किंतु डॉ मनीष मिश्रा ने बड़ी ही तल्लीनता से अपने भावों को रसात्मक तरीके से व्यक्त किया है। आचार्य विश्वनाथ के अनुसार "वाक्यां रसात्मक काव्यं" को कवि अपनी कविताओं के माध्यम से चरितार्थ करने का पूरी शिद्धत के साथ से प्रयास किया हैं। मनीष की कविताओं में भावतत्व की प्रधानता स्पष्ट रूप से झलकती है।
इनकी कविताओं में सिर्फ स्त्री- पुरुष प्रेम ही नहीं बल्कि समय और समाज के तमाम छोटे-बड़े सवालों या परिस्थितियों को आंखों के सामने खड़ा करती हैं। कवि की कविता "मैंने कुछ गालियां सीखी है" यह दर्शाता है कि मनुष्य को जहां रहना है, उसे सिर्फ उस प्रदेश या राज्य की केवल सकारात्मक चीजों को नहीं बल्कि समाज के हिसाब से गलत समझी जाने वाली चीजों को भी सीखना पड़ता है। जहां हम निवास करते हैं वहां सिर्फ अच्छाइयों को नहीं बल्कि कुछ गलत चीजों को भी अपनाना पड़ता है, और जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग भी करना पड़ता है। तभी आप वहां के अपने कहलाने लगते हो। कवि अपनी कविता में कहते हैं कि"
"यहां अब देश नहीं
प्रादेशिकता महत्वपूर्ण होने लगी है।
प्रादेशिक भाषा में
गाली देने से ही
हम अपने सम्मान की
रक्षा कर पाते हैं
पराए नहीं
अपने समझे जाते हैं
इस देश के
कई प्रदेशों में
आत्म सम्मान से
जीने के लिए
अब गालियां जरूरी है"।१
इन पंक्तियों की अर्थव्याप्ति इतनी अधिक है कि इसे जिस तरह से भी व्याख्यायित करें कम ही रहेगी। कवि ने इस कविता में हमारे समग्र सामाजिक परिवेश को यथार्थपरक रखा है। यहाँ व्यक्ति नहीं बल्कि प्रादेशिकता महत्वपूर्ण हो गई है।
प्रकृति अपने आप में ही सुंदर है काव्य की सुंदरता बढ़ाने के लिए कवि अपनी कविताओं में प्रकृति का मनोहर रूप का वर्णन करते है। कवि अपनी कविता के माध्यम से केवल देवभूमि की सुंदरता ही नहीं बल्कि अपनी श्रद्धा को अर्पित करते हुए नमन करते हैं। कहते हैं कि
"हे देवभूमि
यह तुझ पर
कोई कविता नहीं
तेरे प्रति कृतज्ञता ज्ञापन है
मनुष्य की कृतघनताओं के लिए
क्षमा याचना है"।२
कवि देव भूमि को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हुए अपने आदर्शों तथा संस्कृति का परिचय देते हैं।
कवि प्रकृति को अपने आप में ही एक सुंदर महाकाव्य बताते हुए कहते हैं कि
"इन पहाड़ों में
मानो बाचती हो
साजती हो
रचती हो
सौंदर्य का कोई महाकाव्य"।३
यहां पर सौंदर्य का संबंध केवल बाह्य जगत की अपेक्षा आंतरिक सत्ता से अधिक है कवि ने प्रकृति को बड़े ही खूबसूरत ढंग से मानवीकरण किया है।
कवि ने अपनी कविताओं को गहरे प्रेम से रचा है इस प्रेम में एक मित्र, प्रेयसी या उसकी कल्पना भी हो सकती है। जब कोई व्यक्ति अपनों को किसी अधिकारवस किसी भी तरह से संबोधित करता है, तो यह संबोधन उस रिश्ते या अपनत्व की पराकाष्ठा को बताता है।
कविता "चुड़ैल" में कवि कहते हैं कि
"जब कहता हूं तुम्हें
चुड़ैल तो
यह मानता हूं कि
तुम हँसोगी
क्योंकि तुम जानती हो
तुम हो मेरे लिए
दुनिया की सबसे सुंदर लड़की
जिसकी आलोचना
किसी भी तारीफ से
मुझे कहीं ज्यादा
अच्छी लगती है"।४
यह संबोधन ही उसकी मित्र या प्रेमिका को उसके अपनत्व का एहसास दिलाती होगी।
कविता अक्सर अपने जिए हुये पलों तथा रूमानियत के सहारे लिखी जाती है। कवि अपनी रचना के इन्हीं दोनों पक्षों का सहारा लेते हुए अपनी रचना धर्मिता की अनुभूतियों को पिरोता जाता है। कवि मनीष की कविता सादगी से परिपूर्ण सरल और जीवंत कविता है जिससे हर एक पाठक वर्ग इन कविताओं को पढ़ते हुए अपने आप ही जुड़ता चला जाएगा है।
संदर्भ ग्रंथ
1) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ६३
२) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ४१
३) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ४०
३) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ४४
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