अपने पहले पोस्ट --- हिंदी में संचालन का शौख/part 1 के माध्यम से कुछ उम्दा काव्य पंक्तियाँ और शेर पहुचाने की जो जिम्मेदारी मैंने ली थी ,उसी कड़ी में कुछ और शेर और काव्य पंक्तियाँ यंहा दे रहा हूँ. आशा और विश्वाश है की आप को ये पसंद आएँगी .
सच की राह पे बेशक चलना ,पर इसमें नुकसान बहुत है
उन राहों पे ही चलना मुश्किल,जो राहें आसन बहुत हैं.
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मेरा दुःख ये है की मैं अपने साथियों जैसा नहीं हूँ,
मैं बहादुर तो हूँ लेकिन,हारे हुए लश्कर में हूँ .
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हमे खबर है की हम हैं चिरागे-आखिरी -शब्,
हमारे बाद अँधेरा नहीं उजाला है.
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किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते,
जब सवाल ही गलत थे तो जवाब क्या देते .
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बीते मौसम जो साथ लाती हैं
वो हवाएं कंहा से आती हैं
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कोई सनम तो हो ,कोई अपना खुदा तो हो
इस दौरे बेकसी में ,कोई अपना आसरा तो हो
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क्यों न महके गुलाब आँखों में,
हम ने रखे हैं ख़्वाब आँखों में .
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हम तेरी जुल्फों के साए को घटा कहते हैं
इतने प्यासे हैं की क्या कहना था ?क्या कहते हैं ?
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मेरी ख्वाइश है की फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं
माँ से इस तरह लिपट जाऊं की बच्चा हो जाऊं
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आदमी खोखले हैं पूस के बदल की तरह ,
सहर मुझे लगते हैं आज भी जंगल की तरह .
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जिन्दगी यूं भी जली ,जली मीलों तक
चांदनी चार कदम,धूप चली मीलों तक
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कोई ऐसा जंहा नहीं होता
दोस्त-दुश्मन कंहा नहीं होता
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आगे भी ये सिलसिला जारी रखूँगा .आप को ये संकलित शेर कैसे लगे ?
Friday, 12 February 2010
हिंदी में संचालन का शौख/part 2
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bahut hi umda sher hain.......ek se badhkar ek.
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