अनुदान की बेला जब आई , आख्यान हमेशा काम आई ;
दान की नीयत बन आई ,जब सम्मान की सूरत दिख पाई;
बिना किये जो मिल जाये ,वो सबको सुख कर होती है
है दौर दिखावे का ये लेकिन , अच्छाई कब खुद को खोती है ;
बंदिश से हो हासिल क्या , स्वतंत्रता से हो गाफिल क्या ?
बिना कर्म कब शांति मिली है ,वासनाओं से कब क्रांति मिली है /
देने से सुख कर कब क्या है ,लेने से दुःख कर कब क्या है ;
बंद हथेली लाख की अब भी ,खुली हथेली ख़ाक की है ;
बिना स्वार्थ के दान पुण्य है ,अपनो का मान पुण्य है /
सच्चाई का जीना हितकर ,अच्छाई का काम पुण्य है /
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