इस दुनिया की हम क्यों माने?
गुनाह इश्क को क्यों जाने ?
दिल की बातो को आखिर ,
क्यों कर सब से हम छुपायें ?
अपनी मर्जी से अपना जीवन ,
बोलो क्यों ना जी पायें ?
लगी लगी है दिलमे जो ,
आखिर उसको क्यों न बुझाएँ ?
जिसको प्यार किया है मैंने ,
उससे क्यों ये हाल छुपायें ?
bahoot achcha dr sahab aap ke rachana achhi hai
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