क्या कहें वक्त ने हालात कैसे बदले हैं
थे हाथों में हाथ जिनके कभी ,
उनके व्यवहार कैसे बदलें हैं /
जीवन का मर्म का क्या कहें ,
कहीं कोई कारवां नही दिखता ;
रूठे वक्त में कह सकूँ मेरा ,
ऐसा कोई सपना भी नही दिखता /
समय की करवटों से ,
सच की हरकतों से ,
मेरी अपनी बहसों से ;
अहसास बचा हो जिसके मन में कोई नम ;
ऐसा कोई अपना भी नही दिखता /
प्यार दिखाते औ बातों से अपनापन,
है आखों में दुरी औ एक रूखापन ;
जुदाई की घड़ियों में भी ,
तनहाई न पास आने पाई ;
दूर रही या पास रही ,
पर वो सिने में महफूज रही ;
तनहाई से दुरी का रिश्ता ,
मुझे कभी ,नही है दीखता ;
प्यार अपना जवाब आप है ;
इन्सान का मन अगर साफ़ है ;
बदलते वक्त से प्यार का रिश्ता ,
मुझे कभी ,नही है दिखता ;
जीवन का मर्म का क्या कहें ,
कहीं कोई कारवां नही दिखता ;
Friday, 29 May 2009
क्या कहें वक्त ने हालात कैसे बदले हैं ;
Labels:
हिन्दी कविता hindi poetry

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