अभ्यर्थना में तेरे निकाल दिए बरसों ;
तेरी अनिश्चितता का क्या कहें ,कभी तो खुल के बरसो /
हर बार कुछ आस दे के सिमट जाते हो ;
खुशी के कुछ लम्हे, पर लम्बा बनवास दिए जाते हो /
मजबूरियों से किसी के नावाकिफ नहीं है कोई ;
पर दिल को हर बार उदास किये जाते हो /
भावनावों का ;दुनिया की रीती से ,लोंगों की बुद्धिमत्ता की सीख से;
कब याराना रहा है यार मेरे ?
फिर क्यूँ भावों को हर बार, पराजय का अहसास दिए जाते हो ?
Friday, 1 May 2009
अभ्यर्थना में तेरे निकाल दिए बरसों
Labels:
हिन्दी कविता hindi poetry

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bahut gahre ahsaas ke sath likhi rachna hai.
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