Monday, 4 May 2009

लौटा है आज वो घर बरसों बाद

लौटा है आज वो घर बरसों बाद ,
हर साल दो साल बाद ,
वो घर आता जरूर था ;
पर लौटा है घर आज वो बरसों बाद /
ख़त या इ मेल तो अपनो को करता था ;
पर वो बस खोखले शब्दों का मायाजाल है मात्र /
उसने अपने फ्लैट में गमले सजाएँ हैं ;
कई छुट्टियाँ शहर के आस पास के पहाडों ,औ पर्यटन स्थल पे बिताएं हैं/
कहाँ पाया उसने गाँव की मिट्टी का अपनापन !
शहर की पार्टियों पर ,नेटवर्क की साइटों पर ,सैकडों मित्र, मैत्रिणी है उसकी ,
कहाँ पाया उसने ;बचपन के दोस्तों की निश्छलता ,अपनापन ;
कैसे पाए अपने वो मचले दिन ?
बचपन की लड़ाई ,वो कसक , उतावलापन ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
कभी फ़ोन ,कभी मोबाइल पे बात कर लिया करता था अपनो से ,
पर कहाँ पाए वो उष्मा दादी की गोद का ,
मामा की सोच का ,
चाचा की डांट का ,
पडोसी के दुलार का ;
माँ की ममता का ,
पिता की कडाई का ,
दादा की रजाई का /
बड़ा आदमी बन गया है अब वो ,
प्यार को कितना तरस गया है वो ;
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
बिस्तर माँ को जकडे पड़ा है ;
पिता की आखों में खालीपन सा छुपा है ;
बचपन का दोस्ताना ,अपनो का याराना कहीं खो सा गया है /
भाई भाभी विस्मित है ,किस ढंग से पेश आयें ;
सब चाहते तो है अपनापन और हक दिखलायें ;
झूठा दिखावा और भावों का ओथालापन ;
उसका खुद का और अपनो का ;
दोनों को व्यथित किये है ;
इतने सालों को कैसे जोड़े ,
ये प्रश्न भ्रमित किये है /
सालों की अपनी सफलता में ,
बीबी के चाह में ;
बच्चों को पालने में ,
शहर की चमक में ,
भविष्य को निखारने में ;
अपने सुख ,झूठे  दिखावे और विलासों के साये में ;
बिता डाले ;कितने ही सावन , होली दिवाली ;
शहरों की दीवालों में ;
पर लौटा है आज वो घर बरसों बाद /
आज बीबी का तन शिथिल , मन का वो नही जानता ;
बच्चे अपनी जिंदगी में मस्त ;
समाज और दोस्तों में वाह  वाही है ;
ह्रदय खाली सिर्फ खाली है/
ये उसकी अपनी जिंदगी का खोखलापन,
डरावने सपने सा सामने खडा है ;
और आज उसके सामने practical बनने का  attitude ;
यछ प्रश्न सा सिने में जड़ा है /
लौटा है आज वो घर बरसों बाद /

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