ONLINE HINDI JOURNAL
Wednesday, 16 June 2010
खुद को उसकी आखों से कभी देखा था /
खिला गुलाब बगीचे में कभी देखा था ,
महकता ख्वाब मैंने भी कभी देखा था ;
खुदाई बिखरी है जर्रे-जर्रे में ,
खुद को उसकी आखों से कभी देखा था /
1 comment:
vandana gupta
17 June 2010 at 12:45
bahut khoob.
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bahut khoob.
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