ONLINE HINDI JOURNAL
Saturday, 19 June 2010
उन आखों की उलझन को सुलझायुं कैसे ,
ऊन आखों की उलझन को सुलझायुं कैसे ,
ऊन
सहमे हुए भावों को समझाऊं कैसे ,
रह कर गैर की बाँहों में भी जों सोचे मुझको ,
ऐसे
दिलदार को दर्द बतलाऊं भी कैसे ?
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