सब्र का इम्तहाँ ले रहा कब से,मोहब्बत से खेल रहा अब तो,
राह बदल भी देते मगर मजबूरी है, उस बिन जिंदगी अधूरी है/
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मेरा जहन से तू निकला ही नहीं ,
मेरी यादों में तू रहा भी नहीं ;
तू कभी साथ था मेरे पर उसको हुआ बरसों ,
क्यूँ मेरे अश्कों से तेरा रिश्ता टुटा ही नहीं /
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