ONLINE HINDI JOURNAL
Wednesday, 7 July 2010
रूह जलती रही मेरी सर शैया पे
न गम की बरसात होती है ,न ख़ुशी भी साथ होती है ,
जिंदगी बीत रही कुछ ऐसी ,दिन भी रात होती है /
.
न मुलाकात की मैंने ,न कोई शुरुवात की तुने ,
रूह जलती रही मेरी सर शैया पे ,
मेरी
राख को न आग दी तुने /
1 comment:
vandana gupta
8 July 2010 at 12:53
bahut sundar sher.
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