12. विवेकपूर्ण चुप्पियों के बीच
ख़ारिज करने की प्रवृत्तियों के साथ
अपनी आत्मकेंद्रियता
अपने स्व के
संकुचन के साथ
तथाकथित सभ्यता में
सभ्य हो रहे हैं
अपनी कूपमंडूकता में
सभी के पास
अपने मनपसंद झूठ हैं
झूठ से भी बड़े
झूठ के दावे हैं।
इन अंधों के बीच
एक हाँथी भी है
जिसकी व्याख्या करने में
केशकंबली के उच्छेदवाद की
बड़ी सहायता होती
बुद्ध के मध्यम मार्ग की
यहां झलक भी नहीं है
भेड़ियों का हुजूम
हिकारत भरी नज़र से
मनुष्यता को
लहूलुहान कर रहा है।
मुखौटे की ओट में
दमनमूलक सत्ता
सहअस्तित्व और
आत्मा की सत्ता को नकार कर
देह के शिकार में
पूरी तरह व्यस्त है
डरा सहमा विवेक
सबकुछ खोकर
अपनी चुप्पी बचाने में
कामयाब है।
इन बची हुई
विवेकपूर्ण चुप्पियों के बीच
चित्कार व आक्रोश का
ज्वाला फूटना चाहिए
अन्यथा
चुप्पी की नई सभ्यता में
सभ्य
क्या कुछ होगा ?
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
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