Sunday, 7 May 2023

विवेकपूर्ण चुप्पियों के बीच

 












12. विवेकपूर्ण चुप्पियों के बीच 


ख़ारिज करने की प्रवृत्तियों के साथ

अपनी आत्मकेंद्रियता

अपने स्व के

संकुचन के साथ

तथाकथित सभ्यता में

सभ्य हो रहे हैं

अपनी कूपमंडूकता में

 सभी के पास

अपने मनपसंद झूठ हैं

झूठ से भी बड़े 

झूठ के दावे हैं।


इन अंधों के बीच

एक हाँथी भी है

जिसकी व्याख्या करने में

केशकंबली के उच्छेदवाद की

बड़ी सहायता होती

बुद्ध के मध्यम मार्ग की

यहां झलक भी नहीं है

भेड़ियों का हुजूम 

हिकारत भरी नज़र से

मनुष्यता को

लहूलुहान कर रहा है।


मुखौटे की ओट में

दमनमूलक सत्ता

सहअस्तित्व और 

आत्मा की सत्ता को नकार कर

देह के शिकार में

पूरी तरह व्यस्त है

डरा सहमा विवेक

सबकुछ खोकर

अपनी चुप्पी बचाने में

कामयाब है।


इन बची हुई

विवेकपूर्ण चुप्पियों के बीच

चित्कार व आक्रोश का

ज्वाला फूटना चाहिए

अन्यथा

चुप्पी की नई सभ्यता में

सभ्य

क्या कुछ होगा ?

                डॉ मनीष कुमार मिश्रा 

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

International conference on Raj Kapoor at Tashkent

  लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र ( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान ) एवं ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ ( ताशकं...