Saturday, 23 January 2010

गुस्सा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

गुस्सा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

                        आज  लगभग १५ दिन से  घर में  रंग-रोगन  का काम हो रहा  था. शाम को  कॉलेज से  वापस आते  समय मैं खुश था  कि  आज मुझे वही  धूल,अस्त-व्यस्त  सामान और  रंगों  की अजीब सी  ताज़ी महक झेलनी  नहीं पड़ेगी . घर पंहुचा तो अपना  ही घर  अपना नहीं लग रहा था . पूरा घर  एक दम  सुंदर,साफ़  और सुव्यवस्थित . मेरी किताबें भी माँ ने अच्छे से आलमारी में लगा कर रख दी थी .
                        मैं यह सब देख मन ही मन खुश हो रहा था क़ि माँ ने मेरी कितनी मेहनत बचा ली . यह सब  सोचते  हुए ही एक विचार मेरे पूरे  शरीर को बिजली के करेंट की तरह ''झटका '' दे कर चला गया . मैंने अपनी किताबो  को ध्यान से देखने लगा . आशंका  अब  यकीन में  बदल रही थी . जिस बात का डर  था  वही हुआ . मेरी  कई किताबें रद्दी में  सिर्फ इस लिए दे दी गंयी थी क्योंकि  वे बेहद पुरानी हो चुकी थी . मेरे कई  स्मृति चिन्ह  भी  कूड़े दान की  शोभा बन  चुके थे . इतना ही नहीं राज्य  स्तरीय  दो  पुरस्कारों के प्रमाण पत्र भी  पुराने होने की  सजा पा  चुके थे .
                      जैसा की स्वाभाविक है, यह सब जान कर मैं आग बबूला हो गया . लेकिन कुछ कडवी बाते माँ  को सुनाने
के अतरिक्त  मैं कर भी क्या सकता था ? चुपचाप  घर  से  निकल  कर  अपनी  भडास निकालने  ब्लॉग  पे बैठ  गया . लेकिन यह ब्लॉग लिखते-लिखते मेरा  गुस्सा  शांत  हो चुका है . मैं यह  सोच के  खुश हूँ कि  अब राज्य स्तरीय पुरस्कार मेरे घर में कूड़े दान के लायक  समझे जाने लगे हैं . हिंदी साहित्य के कई मूल्यवान ग्रन्थ भी इसी  श्रेणी में  आ चुके हैं . सब माँ  का आशीर्वाद है . वरना मैं महा मूर्ख इस बात  से अभी तक  अज्ञान था . इस अज्ञानतावश ही मैं माँ को ना जाने क्या-क्या  कह आया . मुझे निश्चित ही माँ से  माफ़ी मांगनी  चाहिए . साथ ही साथ उनका  धन्यवाद  भी ज्ञापित करना चाहिए जो उन्होंने मेरे कई पुराने पर अप्रकाशित लेख  नहीं फेके . यंहा तक कि अभी पन्नो पे ही  लिखित डी.लिट. की आधी थेसिस भी उन्होंने कृपा पूर्वक नहीं फेका. अगर फेक भी देती  तो  मै क्या कर लेता ? श्रीमद भागवत गीता की  वो बात याद कर के  अपने  आप को दिलाशा  देता की-जो हुआ  अच्छे  के लिए हुआ .इसके अतरिक्त और  रास्ता भी क्या था .
                           अंत में  माँ को  धन्यवाद और कोटि -कोटि प्रणाम !!!!

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

What should be included in traning programs of Abroad Hindi Teachers

  Cultural sensitivity and intercultural communication Syllabus design (Beginner, Intermediate, Advanced) Integrating grammar, vocabulary, a...