शिक्षा का व्यवसायीकरण : उचित या अनुचित
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि हमे वही शिक्षा लेनी चाहिए जिसके माध्यम से हम अपनी आजीविका चला सकें. इसी बात को आज के बाजारीकरण और भू मंडलीकरण के युग में बढ़ावा मिला है . व्यावसायिक शिक्षा की तरफ लोंगो का रुझान देखकर के ही कई राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय औद्योगिक घरानों ने शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करना शुरू किया. वैसे भी सिर्फ सरकार के भरोसे शिक्षा क्षेत्र में इतनी बड़ी पूँजी का निवेश संभव ही नहीं था . उदारवादी मापदंड जो १९९० के बाद अपनाए गए,उन्होंने इस क्षेत्र में क्रांति की . निजी क्षेत्र से पूँजी का आना और बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों का खुलना भारत के लिए बहुत ही सुखद रहा .
इस देश में लाखों नए शिक्षा संस्थान खुले. हजारों लोगों को रोजगार मिला . लाखो विद्यार्थियों को इसका पूरा लाभ मिला . जो बच्चे विदेशों में शिक्षा लेन जाते थे, वे अपने ही देश में रुक गए. इस तरह जो पैसा विदेशों में जाता था वह देश में ही रह गया . शिक्षा के स्तर में सुधार आया . रोजगार के अच्छे अवसर इस देश में ही उपलब्ध होने लगे . देश की अंतर्राष्ट्रीय शाख में सुधार हुआ . पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंग के मंडल आयोग के बाद आरक्षण का जो जिन सवर्ण विद्यार्थियों को मुसीबत नजर आ रहा था, उससे बचने के लिए ये बच्चे सरकारी नौकरियों का मोह त्याग कर व्यावसायिक शिक्षा की तरफ उन्मुख हुए और मल्टी नेशनल कम्पनियों में मोटी तनख्वाह के काम करने लगे. यह सब उन के लिए एक नई दिशा थी .
लेकिन इस शिक्षा के निजीकरण के कुछ नकारात्मक बिदु भी सामने आये. कई लोग सिर्फ व्यावसायिक दृष्टि कोन के साथ इस क्षेत्र में आये और मुनाफाखोरी के लिए हर सही गलत काम करने लगे .इससे नैतिकता का पतन हुआ . कई बच्चों के भविष्य के साथ खेला गया . उन्हें आर्थिक नुक्सान हुआ . सरकार के खिलाफ आवाज उठाई गई . अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे भारत की साख पे बट्टा लगा . यु.जी.सी. को सख्त कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ा . आज भी आप यु.जी.सी. की वेब साईट www.ugc.ac.इन पे जा कर फेक यूनिवर्सिटी की लिस्ट देख सकते हैं. हाल ही में देश की ४४ डीम्ड यूनिवर्सिटी पे कार्यवाही का मन सरकार ने बनाया था. ये सब बातें साफ़ इशारा करती हैं की शिक्षा के क्षेत्र में सब ठीक नही हो रहा है .
मेरे मतानुसार शिक्षा क्षेत्र के इस निजीकरण और इसके साथ साथ इसके बढ़ रहे इस व्यावसायिक रूप में बुराई नहीं है. लेकीन सिर्फ और सिर्फ व्यावसायिक दृष्टिकोण को सही नहीं कहा जा सकता . यंहा एक सामजिक और राष्ट्रिय आग्रह का होना भी बहुत जरूरी है . सामाजिक और नैतिक दायित्व का बोध भी जरूरी है .
आप क्या सोचते हैं ?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
International conference on Raj Kapoor at Tashkent
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र ( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान ) एवं ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ ( ताशकं...
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
-
अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक : 'जिंदगी और जोक` रजुआ नाम एक भिखमंगे व्यक्ति की कहानी है। जिसे लेखक ने मुहल्ले में आते-ज...
No comments:
Post a Comment
Share Your Views on this..