Wednesday, 27 January 2010

धर्म ही नहीं ,विज्ञान सम्मत भी है वर्ण व्यवस्था -------------

 धर्म ही नहीं ,विज्ञान सम्मत  भी  है वर्ण व्यवस्था -------------
             
                       किसी को बुरा लगे, यह तो एक ब्लागर  होने के नाते मै नहीं चाहूँगा ,लेकिन यह एक कडवी सच्चाई है कि आज कल भारतीय हो कर भी  भारतीय सभ्यता और संस्कृति का मजाक उडाना एक फैशन सा हो गया है. जिसे वेदों के बारे में कुछ भी पता नहीं वो भी इनकी चुटकी लेने में पीछे नहीं रहता . इस से भी अजीब बात तो यह है कि हमारे देश में अमेरिका और चीन के इतिहास को पढ़ने कि तो व्यवस्था है,लेकिन अपने ही वेदों और पुरानो का ज्ञान हम नई पीढ़ी को देना जरूरी नहीं समझते. अगर कोई इस तरह कि शिक्षा लेना भी चाहे तो उसे विशेष प्रकार के गुरुकुल या वैदिक संस्थानों कि मदद लेनी पड़ती है . हम अपने ही ज्ञान को अज्ञानता वश बड़े गर्व से आज नकार रहे हैं . सचमुच यह हम सभी भारतियों के लिए शर्म कि बात है . आज अगर कोई  अपने धर्म,देश और वेदों की बात करता है तो हम तुरंत उसे राष्ट्रवादी या संकुचित मानसिकता का करार देते हुए उसे दलितों और स्त्रियों का घोर विरोधी मान लेते हैं. जब की इन बातों का यथार्थ से कुछ भी लेना देना नहीं है   

     बात साफ़ है कि हम अपने ही देश के ज्ञान से अनजान बने हुए हैं और दुनिया उसी के आधार पे आगे बढ़ रही है . आवश्यकता इस बात कि है हम अपने वेदों -पुरानो के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलते हुए इसे  आत्म साथ  करे .यह नहीं कि अज्ञानता वश हम अपने ही वेदों और पुरानो कि बुराई कर 

  अधिक आधुनिक और उदारवादी बनने का ढोंग करते  रहे.                                                                                             .ttp://www.ria.ie/news/watson2.html
 

          हमे अपनी अश्मिता  और गरिमा को खुद पहचानना होगा,न कि इस बात का इन्तजार करना चाहिए कि पहले कोई विदेशी हमारी चीजों को अच्छा कह दे फिर हम  उसका  गुणगान  करना शुरू करे
 

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 DR.WATSON   ८६ वे साइंस कांग्रेस में भाग लेने जब चेन्नई  आये हुए थे तो उन्होंने  भारतीय वर्ण व्यस्था की तारीफ़ करते हुए इसे जींस की शुद्धता के लिए महत्वपूर्ण बताया था. साथ ही साथ उन्होंने अरेंज मैरेज  को भी BETTER GENE POOLS के  लिए सही माना था . लेकिन उस समय इस तरह  के शोध को ले कर एक डर यह भी था कि SUCH RESEARCH WOULD REINFORCE THE VARNA SYSTEM WITH GENETIC EVIDENCE. प्रश्न यह उठता है कि जो बात विज्ञान के माध्यम से सही साबित हो रही है, उसे सामने  लाने से रोकना कंहा तक सही  होगा ?
                                                इसका  जवाब  हम सभी  को  देना होगा . वैसे  आप इस बारे में  क्या  सोचते  हैं ?           टिप्पणियों  के माध्यम  से सूचित करे
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 (मैं जिस लेख की बात कर रहा हूँ वह  टाइम्स  ऑफ़ इंडिया  में  १९९८-१९९९  में  छपा था . उस लेख  का शीर्षक ही था - watson allays fears on misuse of genetic knowhow /  अगर  आप  चाहेंगे तो इस आर्टिकल को स्कैन कर नेट पे ड़ाल दूंगा . )

2 comments:

  1. Publication: Times Of India Ahmedabad; Date: Jan 28, 2010; Section: Times City; Page: 11


    Gujarat discriminates in 99 ways
    Report On Understanding Untouchability Released
    TIMES NEWS NETWORK

    Ahmedabad: There are at least 99 ways and practises of untouchability in which the Dalit community in Gujarat faces humiliation on a daily basis. This was revealed in a path-breaking study titled: Understanding Untouchability — A comprehensive study of practises and conditions in 1,589 villages. The report was released at Gujarat Vidyapith here on Wednesday by chairman of University Grants Commission SK Thorat.

    The biggest discrimination on caste basis happens on the issue of religion, where 98 per cent of the 98,000 Dalit men and women surveyed reported having suffered!

    “In 97 per cent of the villages surveyed, Dalits are not allowed to touch articles used in religious rituals. These include articles of wood, cloth, utensils, even incense sticks. In discriminating villages, it is believed that if a Dalit touches a specific item, it will be defiled. In some cases, it is believed that gods could be defiled as well,” says the report. What’s more, the non-Dalits also do not visit the temple of chief goddess in a Dalit community.

    The study has been carried out by Navsarjan Trust and Robert F Kennedy Centre for Justice and Human Rights. Manjula Pradeep of Navsarjan Trust said that special focus was kept on finding how much untouchability was prevalent in daily-life issues like religion, water, food and beverage and touch.

    Beyond religion, the report has found that untouchability is practised in other aspects including panchayats, schools and even shops. “In 67 per cent villages, Dalit panchayat members will not be given tea or will be given tea in separate ‘Dalit cups’. In 56 per cent villages, cups are kept separate even in tea-stalls and Dalits have to wash their own cups,” says the report.

    The report also highlighted how in 53 per cent villages, Dalit children are seated separately non-Dalit children at mid-day meal at schools and they are expected to go home to drink water. It also points out how the discrimination happens within the Dalit community as well.

    “In 95.8 per cent villages, higher caste Dalits will enforce the practise where the lower sub-caste Dalits will remove carcasses,” says the study. Human rights activists said that the study should serve as an eye-opener and prompt the state government, as well as, the society to get rid of the social menace of untouchability. “All should join forces to eradicate untouchability from the state. We will join hands with Navsarjan Trust and our children will visit villages where untouchability is practised and create awareness,” vice-chancellor of Gujarat Vidyapith Sudarshan Iyengar said.

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  2. हां, आपने बहुत सटीक बात कही है, जब तक हम अप्ने साहित्य, इतिहास , ग्यान को पढेंगे, देखेंगे, समझेंगे ही नही कैसे जानेंगे, वेदों के बारे में. हम अपना इतिहास पढते भी हैं तो अन्ग्रेज़ी चश्मे से ।---गीता में तो साफ़ कथन है---चतुर्वर्ण्य मया स्रश्टा---गुण कर्म विभागषः ।---बहुत समय तक किये हुए गुण-कर्म ही जेनेटिक कोड बन जाते हैं ।

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