Friday, 12 April 2013

प्रेम विस्तार है

 प्रेम  विस्तार  है , स्वार्थ  संकुचन  है . इसलिए  प्रेम  जीवन  का  सिद्धांत  है . वह  जो  प्रेम  करता  है  जीता  है , वह  जो  स्वार्थी  है  मर  रहा  है .   इसलिए  प्रेम  के  लिए  प्रेम  करो , क्योंकि  जीने  का  यही  एक  मात्र  सिद्धांत  है , वैसे  ही  जैसे  कि  तुम  जीने  के  लिए  सांस  लेते  हो .

स्वामी विवेकानंद


                                                                                            

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

एक शब्द में अध्यात्म की परिभाषा

 भगवान कृष्ण ने भगवद्गीता (अध्याय 9, श्लोक 22) में "योग" शब्द के माध्यम से अध्यात्म की परिभाषा दी है। यह श्लोक इस प्रकार है— अनन्य...