Monday, 1 August 2011

वो ख़्वाब जो अधूरा रह गया




अपने हाल की कुछ खबर नहीं है सालों से ,
पर लोग यह बताते हैं कि-
मैं जीने का सलीका भूल गया हूँ
 कोई कहता है कि -
 मैं टूट गया हूँ .
 कोई कहता है कि -
 मैं रूठ गया हूँ
 और तो और
 कुछ हैं जो कहते हैं कि -
 मैं पागल हो गया हूँ .
 यह सब कुछ सुनते हुवे भी
 मैं कुछ नहीं बोल पाता .
 शायद कुछ बोलने कि
 जरूरत ही नहीं समझता .
पर सोचता हूँ
वो ख़्वाब जो तेरे साथ देखा था
 वो पूरा हो गया होता तो
 जिन्दगी जीने का ,मुझसे बेहतर हुनर
 आखिर किसके पास होता ?  

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