अपने हाल की कुछ खबर नहीं है सालों से ,
पर लोग यह बताते हैं कि-
मैं जीने का सलीका भूल गया हूँ
कोई कहता है कि -
मैं टूट गया हूँ .
कोई कहता है कि -
मैं रूठ गया हूँ
और तो और
कुछ हैं जो कहते हैं कि -
मैं पागल हो गया हूँ .
यह सब कुछ सुनते हुवे भी
मैं कुछ नहीं बोल पाता .
शायद कुछ बोलने कि
जरूरत ही नहीं समझता .
पर सोचता हूँ
वो ख़्वाब जो तेरे साथ देखा था
वो पूरा हो गया होता तो
जिन्दगी जीने का ,मुझसे बेहतर हुनर
आखिर किसके पास होता ?
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