आज  मेरे अंदर  रुकी हुई एक  नदी
 सालों बाद फिर चलने के लिए तैयार हुई. 
 किसी के स्नेह का हिमालय 
अपनेपन की ऊष्मा के साथ 
 मेरे लिए पिघलने को तैयार है .
वो पिघलेगी तो 
 मुझे तो बहना ही होगा /चलना ही होगा
उसके प्यार में लबालब होकर 
उसके अंदर खुद को बसाकर
खुद को मिटाकर भी
उसी के खातिर बनना है
परिमल,विमल -प्रवाह.
उसके अंदर खुद को बसाकर
खुद को मिटाकर भी
उसी के खातिर बनना है
परिमल,विमल -प्रवाह.
उसी में खोकर
उसी के साथ
जी लूँगा तब तक
जब तक क़ि वह देती रहेगी
अपने प्रेम और स्नेह का जल
अपनेपन क़ी ऊष्मा के साथ .
 
 
IS KAVITA ME NADI APKE MAN KE BHAVO KO SPASHT KAR RAHI HAI.
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