जिन्दगी की दौड़ में
तुम्हारा हाथ हांथों से छूट जाने के बाद
मैं हांफता रहा
अपनी आँखों से
तुम्हे दूर जाता हुआ देखता रहा.
तुम्हारे बाद भी
तुम्हारे लिए ही
पूरी ताकत से दौड़ता रहा
पर तुम कंही ना मिली .
वीरान रास्तों पर
अब भी चलता जा रहा हूँ
तुझे सोचते हुवे
तुझे चाहते हुवे
तुम्हारी उम्मीद में
तुम्हारी ही तलाश में
एक ऐसी तलाश जिसमे
जुस्तजू के अलावां
और कुछ भी नहीं
खुद को छलने के सिवा
और कुछ भी नहीं.
त्रिषिता की तृष्णा के सिवा
कुछ भी नहीं
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