Sunday 14 August 2011

क्या हमे अन्ना हजारे का साथ देना चाहिए ?


लोकपाल बिल को लेकर आज कांग्रेस सरकार और अन्ना हजारे आमने -सामने हैं. कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता आज अन्ना हजारे को ही भ्रष्ट साबित करने की कोशिस करते हुवे दिखाई दिए,लेकिन पल भर में ही उनका झूट जनता के सामने मीडिया द्वारा ही आ गया.ऐसे में जहन में एक सवाल उठा कि आखिर यह कौन है जिसने पूरी की पूरी सरकार के नाक में दम कर रखा है. आखिर सरकार आज इतनी डरी हुई क्यों है ? क्या आत्मकेंद्रित हो चुके इस देश के मध्यम वर्ग और बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते निम्न मध्यवर्ग को सरकार के खिलाफ खड़े करने की
ताकत अन्ना हजारे में है ?
     समाजसेवी अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए सशक्त जन लोकपाल को आजादी की दूसरी लड़ाई बताते हुए कहा है कि मैं तब तक लड़ता रहूंगा, जब तक शरीर में प्राण है। हमारा मकसद भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवा कर आम जनता को राहत देना है।गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने युवाओं से आह्वान किया कि वे जन लोकपाल बिल को लेकर एक बार फिर से जन आंदोलन करें। आंखों में आंसू लिए हजारे ने कहा कि अगर सरकार 1 अगस्त को संसद में कमजोर लोकपाल बिल पेश करती है तो युवा एक बार फिर आंदोलन की राह पकड़ लें। उन्होंने कहा कि सरकार को जगाने के लिए जनता को जागना होगा. लेकिन मेरी आशंका यही है कि क्या जनता अन्ना का साथ देगी या रामदेव का रामलीला मैदान वाला काण्ड ही दुहराया जायेगा ? हम बस घर में चाय-पकोड़े के साथ ब्रेकिंग न्यूज़ देखते रहेंगे और निरर्थक चर्चा करते रहेंगे, ठीक उस गधे की तरह जो कुछ न कर पाने की हालत में अपने पैरों से जमीन की धुल ही उडाता रहता है 
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                        लोकपाल विधेयक पारित कराने के लिये केंद्र सरकार पर 'निर्णायक दबाव' डालने के मकसद से १६ अगस्त से आमरण अनशन करने जा रहे गांधीवादी कार्यकर्ता अन्ना हजारे के साथी कार्यकर्ता आम लोगों को इस संबंध में लामबंद करने के लिये एक अगस्त से देशभर के कई शहरों में जन लोकपाल यात्रा शुरू करने  की योजना बनाई. आम लोगों की राय ली गयी.लेकिन सरकार की दृष्टी में यह सब निरर्थक कार्य है.अन्ना हजारे ने 16 अगस्त के अपने प्रस्तावित आंदोलन पर इसे ‘कुचले जाने’ की ‘धमकियों’ के बावजूद आगे बढ़ने का संकल्प लिया और कहा कि ‘वह लाठी ही नहीं बल्कि गोलियों का सामना करने को भी तैयार है.अन्ना ने इस बात का भी  प्रमुखता से उठाते हुवे कहा कि सूचना का अधिकार जैसा कानून समाज के दबाव की वजह से ही लागू हुआ हजारे ने कहा ‘यदि यह (लोकपाल को लेकर सरकार पर दबाव) ब्लैकमेल करने के समान है तो मैं अपनी समूची जिन्दगी ब्लैकमेलिंग का सहारा लेने को तैयार हूं.’ अन्ना के तेवर उनके दृढ संकल्प को दर्शाते हैं. यह अन्ना हार मानने वाला नहीं है. अगर सरकार ने दमन का रास्ता अपनाया तो शायद यह कांग्रेस के भविष्य के लिए अच्छा न हो .
          अन्ना हजारे सभी  को सदाचारी इंसान बनने की सीख देते  है। उन्होंने कहना है कि पढऩा लिखना ही जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिए,जब  हर बच्चे, हर नागरिक  की मंजिल सदाचारी इंसान बनने की होगी तब ही देश का विकास संभव हो पाएगा। उन्होंने सामाजिकता के अभाव वाली पढ़ाई को नाकारा बताया।  उन्होंने कहा है कि उनके आंदोलन से भ्रष्टाचार में लिप्त महाराष्ट्र के 6 केबिनेट मंत्रियों को अपनी कुर्सी छोड़ कर के घर 
बैठना पड़ा, यह तब संभव हो पाया जबकि उन्होंने सादगीपूर्ण जीवन बिताते हुए खुद पर एक भी कलंक नहीं लगने दिया। उन्होंने कहा कि इसी शैली के कारण भ्रष्टाचार विरोधी एवं पर्यावरण संरक्षण के आंदोलन में जनता ने उनका साथ दिया।अन्ना हजारे  बच्चों को चरित्रवान बनने तथा शुद्ध आचार विचार एवं निष्कलंक जीवन जीने की सीख देते हैं .वे कहते हैं कि मन बड़ा चंचल है, यह कब  धोखा दे जाए पता नहीं चलता है। बुरे कर्म मन के कारण ही उत्पन्न होते हैं, ऐसे में मन पर लगाम लगाना आवश्यक है। 

          भ्रष्टाचार ख़त्म करने के लिए अन्ना जो बातें कहते हैं , उनमे प्रमुख है 
१- भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त से सख्त कानून .
२-हमारी शिक्षा व्यवस्था और परिवार के बीच नैतिक मूल्यों की शिक्षा
३-आचरण की पवित्रता पर ध्यान 
 ४-अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना .
 ५-अपने अधिकारों के लिए लड़ने की तैयारी रखना 
६- लोकतंत्र में पूरा विश्वाश रखते हुवे अहिंसा के मार्ग पे चलना 
७-आचरण और व्यवहार में सामंजस्य बनाये रखना
८-कथनी और करनी एक सी होनी 
९-अन्याय के आगे कभी न झुकना 
१०-सच्चाई की राह पर विचलित हुवे बिना चलते रहना

      अन्ना का समर्थन भी हो रहा है और विरोध भी. श्री प्रवीण बाजपाई लिखते हैं कि-"आज हम कालाधन भ्रष्टाचार की बहुत  बात कर रहे है पर क्या  इसके लिए जिम्मेदार नहीं है वह अभिजात्य वर्ग जो इसके लिए काफी आक्रोश में है मतदान के लिए कहा जाता है मतदान के लिए उन्ही का प्रतिशत ज्यादा रहता है जिनके लिए काले धन का कोइ मायने नहीं है जो ये नहीं जानते की कालाधन है क्या उस समय भी पेट की आग वोट के बदले बिक जाती है .जहापर ५० प्रतिशत से कम मतदान होता है तो क्या यह नहीं माना जाना चाहिए की बहुसंख्यक को आपके तंत्र पर विश्वास नहीं है कितनी अजीब सी बात है की कुल ४० या ५० प्रतिशत मतदान हुआ जिसमे जीतने वाले को २० या २५ प्रतिशत से जयादा मत मिले और वह जनता का प्रतिनिधि बन गया लेकिन क्या वह वास्तव में है ५० प्रतिशत ने मतदान में भाग नहीं लिया बचे ५० प्रतिशत जिसमे जीतने वाले ने मान लीजिये २६ प्रतिशत वोट लिए तो वह प्रतिनिधि सिर्फ २६ प्रतिशत का हुआ लेकिन ७४ प्रतिशत जो बहुसंख्यक है उसका भी प्रतिनिधित्व करता है इसके लिए वे जिम्मेदार है जो वोट नहीं करते है लेकिन इन चर्चो में बढचढ कर भाग लेते ,हम जो भी फोरम बनाते है उसे लोकतंत्र में आने दीजिये मत के सहारे सत्ता परिवर्तन करे आप अपना द्वारपाल बैठाये , अपना लोकपाल बैठाये फिर किसी बिल की जरुरत नहीं होगी सत्ता में असली गण होगा जिसका अपना स्व-तंत्र होगा."
         भाई प्रवीण जी की  बात से मैं भी कुछ हद तक सहमत हूँ और अन्ना भी.अन्ना खुद इस बात के समर्थक हैं की चुनाव प्रक्रिया में किसी को भी न चुनने का विकल्प होना चाहिए.आगे इसके लिए भी अन्ना लड़ाई लड़ने के मूड में हैं. लेकिन मात्र इस कारण लोकपाल का विरोध सही नहीं लगता .किसी की पंक्तियाँ हैं कि


 सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है।
         
दिल पे रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है।।




             इसलिए अब १६ अगस्त को अन्ना के साथ पूरे देश को खड़ा

 होना ही पड़ेगा ,एक नई आजादी के लिए.


       जय हिंद !!


























   

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