न जाने क्यों
अब जब भी तुमसे बात करता हूँ
बहुत उदास हो जाता हूँ.
तुम वही हो
वैसी ही हो
पर शायद वो वक्त कंही पीछे छूट गया है
जिसमे हम साथ जीते थे .
सपने देखते थे.
लड़ते -झगड़ते थे.
पर एक रहते थे.
कितना मासूम हूँ
जो यह सोचता हूँ कि
तुम आज भी वंही खड़ी होगी
मेरे इन्तजार में
.
.
फिर अचानक तुमसे बात करते हुवे
एहसास होने लगता है कि
तुम जा चुकी हो
वंहा जन्हा
मेरी हर बात अब निरर्थक है.
मैं शायद समय के साथ
बदल नहीं पा रहा हूँ खुद को
वरना तुम्हारी तमाम बेवफाइयों के बाद भी
तुम्हे चाहने का सबब क्या है ?
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