Tuesday, 3 August 2010

मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे

मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे 
दे सके तो मेरे सपनों को कोई आकार तो दे दे  
चाहत नहीं बची किसी चाह की कोई
मेरे बिखरे वजूद को कोई राह तो दे दे

सूखे ख्वाबों का पेड़ हूँ हरियाली के आँगन में

दे सके तो आहों की राख तो दे दे
जिंदगी बिताने को एक आस है बहुत
मेरी मोहब्बत को कोई विचार तो दे दे

गुजर रही तेरी जिंदगी बड़े सुखो  आराम से
इस जन्म का न सही अगले जन्म का होंकार तो दे दे
मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे
मेरे बिखरे वजूद को कोई राह तो दे दे










2 comments:

  1. बेहद उम्दा और खूबसूरत भाव भरे हैं……………सुन्दर रचना।

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  2. very nice ......good work.

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