Saturday, 31 July 2010

इम्तहान लेती रही जिंदगी मेरी

इम्तहान लेती रही जिंदगी मेरी
यूँ ही चलती रही जिदगी मेरी
कमियाँ तलाशते रहे लोग अपने
असफलताएं सजाती रही मेरी जिंदगी

व्यवहार बदलता रहा हर मोड़ पे लोंगों का
मेरी मुसीबतों पे मुस्कराती  रही मेरी जिंदगी
हर ठोकर के बाद लंगडाती रही मेरी जिंदगी
अपनो को यूँ  सुकूँ  पहुंचाती रही मेरी जिंदगी

कोई मरहम लगता नमक का कोई तिरस्कार की बातें
कोई अहसान की दवा देता कोई दया की बातें
कोई मुस्कराता हर तकलीफ पे कोई खिलखिलाता हर चोट पे
ऐसे  कितनो को सुख पहुंचाती रही मेरी जिंदगी  

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