जीवन के पैरों पे गिर के,
अभिलाषा ने किया सवाल .
अपने पूरे होने की ,
उसकी थी चाहत प्रिये .
उसकी बाते सुनकर के,
जीवन बस इतना बोला -
जो पूरी ही हो जाए,
अभिलाषा वो कंहा प्रिये .
---------अभिलाषा १०५
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