अनजान राहें न थीं ,
अजनबी बाहें न थीं ;
सिमट न सकी वो मेरे सिने में ,
मोहब्बत की उसमे चाहें न थीं /
बदन की प्यास न थी ,
उपेच्छा की आस न थी ,
मोहब्बत से कब इनकार था मुझको ,
उनसे दुरी काश न थीं /
अभी रोष बाकी है ,
अभी तो होश में हूँ मगर ,
प्यार का जोश बाकी है ;
चाहता हूँ बाँहों में भर सिने से लगा लूँ ,
अभी मेरे इश्क का आवेश बाकी है ,
ये यार मेरे अभी इश्क का उदघोष बाकी है ,
आखों में आंसू दिल में दर्द ,
अभी मेरी चाहत का भावावेश बाकी है /
Thursday, 24 December 2009
अभी मेरी चाहत का भावावेश बाकी है /
Labels:
mohabbat,
हिन्दी कविता hindi poetry

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kuch naya nahi laga
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