Thursday, 12 November 2009

कभी पल मुस्कराया करते थे ,

कभी पल मुस्कराया करते थे ,

कभी क्षण गुनगुनाया करते थे ,

होते थे जब भी तुम कहीं आस पास ;

वो लम्हे खिलखिलाया करते थे /

सामने बैठ तुम कॉलेज की बातें किया करती थी ,

मेरी धडकनों के अंदाज बदल जाया करते थे ;

अपनी सहेलियों की शरारतें बता जब इठलाते थे तुम ,

मेरे अहसास नही दुनिया बसाया करते थे ;

तेरी हँसी का एक शमा बना होता था ,

हम तेरे खुबसूरत चेहरे को निहारा करते थे ;

जब कभी आहत होती किसी के बात पे तू ,

तेरी उदासी को तेरे सिने से चुराया करते थे ;

जब तेरा दिल भर आता अपनो के कारण कभी ,

तेरे ग़मों को अपने ह्रदय में छुपाया करते थे ;

हर रोज सुबह नहा के तेरे निकालने का इंतजार हम करते ,

तुझे देख हर रोज नए सपने बनाया करते थे ;

भोर हुए आखं मलते जब तुम सामने मेरे आते ,

कैसे हम एक दूजे की सिने से लगाया करते थे ;

मन्दिर जब भी गए संग तेरे हम,

तेरी खुशियाँ मांग तेरे मांग में सिंदूर भरा करते थे ;

कभी पल मुस्कराया करते थे ,
कभी क्षण गुनगुनाया करते थे ,
होते थे जब भी तुम कहीं आस पास ;
वो लम्हे खिलखिलाया करते थे /

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