Wednesday, 24 March 2010

ढरकता पल्लू आखों में नाज था /

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ढरकता पल्लू आखों में नाज था , बड़ी मासूमियत से उसने पूछा हाल था ;
उछल पड़ी धड़कन ,सांसे बहक गयी ;मरने नहीं दिया अब जीना मुहाल था /
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1 comment:

  1. मरके भी क्या कर लेंगे.....
    जब पता है कि जिन्दा कर लेगा कोई.

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