Thursday, 18 March 2010

गर्दिशों का दौर कुछ इस कदर आता है ,

तक़दीर जब बिगड़ जाती है ,
तकलीफें हर रोज नया रास्ता तलाश आती हैं ;
दुविधाएं हर ओर बिखर जाती है ,
इल्जामों की बहार छा जाती है ;
जो कायल थे तेरी मासूमियत के ,
उन्हें भी बातों में सियासत नजर आती है ;
तक़दीर जब बिगड़ जाती है ,
---
गर्दिशों का दौर कुछ इस कदर आता है ,
अपनो को भी तेरे रिश्तों में चोर नजर आता है ;
लोगों के अंदेशों की सीमा नहीं बचती है ,
कितनो को तेरी अच्छाई भी बुराई सी दिखती है /
तक़दीर जब बिगड़ जाती है /
---
बिगड़ा नसीब भी बड़ा गुल खिलाता है ,
दर्द हर मोड़ पे मिल जाता है ;
जब भी कोई जिंदगी में गिरता नजर आता है ;
शक का कीड़ा कईयों को काट जाता है ,
भाग्य जब रूठे तो आछेपो की बन आती है ;
अपनो को भी तेरी नीयत में खोट नजर आती है ;
---
तक़दीर जब बिगड़ जाती है ,
तकलीफें हर रोज नया रास्ता तलाश आती हैं ;

-----------------===---------------
वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा ,
तेरी सच्चाई का चांटा कितनो के चेहरे पे नजर आएगा ;
जिनके दिल में कालिख उनके बातों की परवा क्यूँ हो ,

अपने का नकाब पहने दुश्मन की खुदाई क्यूँ हो ;
तुझपे उछाले कीचड़ का दाग उनपे नजर आएगा ;

वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा /

तेरी कमियों की खोज सबब हो जिसका ,
तुझे गिराना ही सारा चरित्र हो जिनका ;
उनका व्यवहार भी सबको समझ आएगा ,
वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा ,;

मनुष्य का भाग्य जब बदल जाता है ,
मुंशिफ बन जाये राजा ज्ञानी धूल खाता है;
वर्षों की मेहनत पल में खाक बन जाती है ;
राह चलते को मिटटी में दौलत नजर आ जाती है ;
वक़्त काट ये वक़्त भी गुजर जायेगा ,
तेरी सच्चाई का चांटा कितनो के चेहरे पे नजर आएगा /
----------==========-------------

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित

 डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित  दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...