Tuesday, 16 March 2010

आखें मींच के सो के उठना ,

आखें मींच के सो के उठना ,

उठते ही वो चेहरा ढूढ़ना ;

दिन में उसकी यादों से यारी ,

रातों को आखों में वारी ;

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सोचों में अब भी वो रहती ,

सपनों में अब भी वो दिखती ;

उसकी झलक को आखें तरसी ,

दिल में मेरे अब भी वो बसती ;

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राह न दिखती चाह की कोई ,

आभास नहीं है आस ना कोई ;

पागल मन उन्मुक्त सा खोजे ;

डोर न मिलती प्यार की कोई ;

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खोजूं मै निगाहें वही ,

जानू केवल बाहें वही ;

अँधियारा कितना भी फैले ,

चाहूँ मै आभासें वही /

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आखें मींच के सो के उठना ,
उठते ही वो चेहरा ढूढ़ना ;
दिन में उसकी यादों से यारी ,
रातों को आखों में वारी ;

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