Saturday, 20 March 2010

बोध कथा -७ : माँ

बोध कथा -७ : माँ
**********************************
                                          बहुत पुरानी बात है. एक जंगल के करीब एक छोटा सा गाँव था. उस गाँव में  व्योमकेश नामक एक  बड़ा ही प्रतिभा शाली मृदंग वादक रहता था. उसकी कीर्ति चारों तरफ फ़ैल रही थी. वह मृदंग वादक सुबह -सुबह जंगल क़ी  तरफ निकल जाता,और एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठकर अपना रियाज शुरू कर देता  था. 
                                       वह मृदंग इतनी खूबसूरती के साथ बजाता क़ी जंगल के कई प्राणी उसके आस-पास आकर खड़े हो जाते और उसे मृदंग क़ी थाप देते हुए घंटो देखते रहते. इन्ही जंगली जानवरों में एक छोटा सा हिरन का बच्चा भी था.वह भी रोज सभी जानवरों के साथ आता.लेकिन जब वह मृदंग वादक मृदंग बजाना शुरू करता तो , वह हिरन का बच्चा  ना जाने क्यों रोना शुरू कर देता .और जब मृदंग बजाना बंद हो जाता तब वह चुप-चाप वंहा से जंगल क़ी तरफ चला जाता.
                                      जंगल के सभी जानवर उस नन्हे हिरन शावक के व्यवहार को समझ नहीं पा रहे थे.खुद मृदंग वादक भी इस बात को समझ नहीं पा रहा था.आखिर एक दिन उस मृदंग वादक ने  फैसला किया क़ि वह इस बात का पता लगा कर रहेगा क़ि आखिर वह हिरन शावक मृदंग बजता देख रोता क्यों है ? अगले दिन जब सभी जानवरों के साथ वह हिरन शावक आया तो मृदंग वादक ने धीरे से उसे पकड़ लिया.वह शावक घबरा गया.सभी जानवर उसे  छोड़ के जंगल क़ी तरफ भाग गए.
                                  उस मृदंग वादक ने उस शावक को गोंद  में उठा कर कहा,'' हे हिरन शावक ,क्या मैं इतना बुरा मृदंग बजाता हूँ क़ी तुम्हे रोना आता है ?'' इस पर उस शावक ने कहा,'' नहीं,ये बात नहीं है.''  इस पर उसने फिर प्रश्न किया,'' तो तुम्हारे रोने का कारण क्या है ?'' इस बात का जवाब देने से पहले ही उस शावक क़ी आँखों से फिर आंसूं बहने लगे.वह रोते हुवे ही बोला,'' आप मुझे गलत ना समझें, दरअसल बात ये है कि आप के मृदंग पे जो हिरन की खाल चढ़ी है,जिससे इतनी सुंदर ध्वनि निकलती है.वो खाल मेरी माँ क़ी है.जिस दिन मैं पैदा हुआ था उसी दिन एक शिकारी ने उसका शिकार कर लिया था.फिर वही खाल आपने खरीदी थी. आप जब इस खाल को बजाते हैं तो मुझे लगता है कि मेरी माँ-------'' इतना कहते ही उस नन्हे शावक का गला भर आया. मृदंग वादक की  आँखों में भी आंसूं थे. वह उस शावक को वँही छोड़ कर अपने घर की  तरफ चला गया.वह मृदंग वँही पड़ा था.नन्हा शावक उस मृदंग क़ी खाल को प्रेम से चाट रहा था. मानों कह रहा हो-
                              '' तेरे बिना बहुत अकेला हो गया हूँ माँ , 
                                तुझ सा ना जग में कोई प्यारा है माँ .''  

 (i do not have any copy right on the same photo) 

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

लास्लो क्रास्नाहोर्काई : 2025 के नोबेल पुरस्कार विजेता हंगेरियाई लेखक

 लास्लो क्रास्नाहोर्काई : 2025 के नोबेल पुरस्कार विजेता हंगेरियाई लेखक  बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जब विश्व साहित्य ने उत्तर-आधुनिक य...