अधीरता का मंजर मुझमे है ;
अव्यक्त की सहजता तुझमे है ;
नदी का वेग हूँ , मन का आवेश हूँ ;
प्यार का झोखा हूँ , सावन अनोखा हूँ ;
तू बहती हवा है ,बादल और निशा है ;
आखों का धोखा है ;स्वार्थ का सखा है ;
मै भावना से ओतप्रोत हूँ ,पानी का स्रोत हूँ ;
तू बिखरी हुयी माया है ;छल और छाया है ,
तुने सहजता का गुन पाया है /
मै स्थिरता हूँ ,जड़ता हूँ ;
रमा हूँ एक भावः में ;
इसीलिए अधीरता का मंजर पाया है /
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