Thursday, 24 September 2009

केशों से ढलकता पानी है ;


केशों से ढलकता पानी है ;


रिमझिम बरसते मौसम की अजब रवानी है ;


महकते फुल हैं ,मदहोशी का शमा है ;


भीगा बदन ,गहरी सांसें अरमां जवां है ;


झिझकती काया है ,उफनते जजबातों की माया है ;


कामनाएं फैला रही हैं अपने अधिकारों को ;


संस्कार की रीतियाँ रोक रही है भावनावों को ;


मन उलझा हुआ है , तन बहका हुआ है ;


डर रह रह के उभर आता है सीमाएं टूट न जायें ;


अरमां आगे बडाते हैं ये लम्हा छुट न जाए ;


स्वर्गिक अनुभूति है पर ज़माने की भी कुछ रीती है ;


प्रिती प्यासी है ख़ुद पे बस कहाँ बाकी है ;


झिझक ,तड़प ,प्यास ,विस्वास ,खुशियाँ और उदाशी हैं ;


आंनद बिखरा पूरे माहोल में है ;


वो सिमटा मेरे आगोस में है ;


मन झूमा तन आह्लादित है ;


बिजलियाँ कौंध रही मनो उल्लासित हैं ;


ह्रदय में द्विक संगीत सा बज रहा है कुछ ;


प्यार की जीत है , बंधन और दूरी झूट है ;


प्यार भी इक पूजा है ,इसके बिना जीवन अजूबा है ;


मिलन भी एक सच है , इश्क भी इक रब है ;


अरमान विजीत है , मन हर्षित है ;


धरती महक रही भीनी खुसबू से ;


पेडों की हरियाली अदभुत है ;


एक अनोखी अनुभूति है छाई ;


वो अब भी है मेरे बाँहों में समाई /


क्या उत्सव है ,क्या है ये लम्हा ;


सांसों का सांसों में मिलना ;


रुक जा वक्त अनमोल ये लम्हा ;


क्या सच है ये ; या है इक सपना /

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